Friday, 31 January 2025

कविता. ५४०४. एहसास कोई मन को।

                            एहसास कोई मन को।

एहसास कोई मन को सरगम दिलाता है कश्ती का एक किनारा बनता जाता है जज्बातों को अरमानों की आस दिलाता है।

एहसास कोई मन को तलाश दिलाता है मुस्कान का एक तराना बनता जाता है आशाओं को बदलावों की आस दिलाता है।

एहसास कोई मन को कोशिश दिलाता है अंदाजों का एक आहट बनता जाता है खयालों को नजारों की आस दिलाता है।

एहसास कोई मन को पहचान दिलाता है किनारों का एक इशारा बनता जाता है सपनों को अफसानों की आस दिलाता है।

एहसास कोई मन को सौगात दिलाता है इरादों का एक किनारा बनता जाता है उजालों को आवाजों की आस दिलाता है।

एहसास कोई मन को उमंग दिलाता है लहर‌ का एक अफसाना बनता जाता है उम्मीदों को अल्फाजों की आस दिलाता है।

एहसास कोई मन को सोच दिलाता है आहट का एक इरादा बनता जाता है कदमों को बदलावों की आस दिलाता है।

एहसास कोई मन को सुबह दिलाता है कोशिश का एक तराना बनता जाता है राहों को अदाओं की आस दिलाता है।

एहसास कोई मन को अंदाज दिलाता है सुबह का एक उजाला बनता जाता है इशारों को नजारों की आस दिलाता है।

एहसास कोई मन को उमंग दिलाता है दास्तान का एक रोशनी बनता जाता है आशाओं को कदमों की आस दिलाता है।

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