Saturday, 1 March 2025

कविता. ५४३३. किनारों की मुस्कान संग।

                              किनारों की मुस्कान संग।

किनारों की मुस्कान संग आशाओं की सरगम रोशनी दिलाती है लम्हों को अल्फाजों की पहचान परख दिलाती है अंदाजों की सुबह दिलाती है।

किनारों की मुस्कान संग अरमानों की सौगात तलाश दिलाती है इरादों को बदलावों की कोशिश दास्तान दिलाती है कदमों की सुबह दिलाती है।

किनारों की मुस्कान संग आवाजों की पुकार उमंग दिलाती है अफसानों को दिशाओं की सोच तराना दिलाती है धाराओं की सुबह दिलाती है।

किनारों की मुस्कान संग अंदाजों की आहट उजाला दिलाती है कदमों को बदलावों की आवाज सौगात दिलाती है लम्हों की सुबह दिलाती है।

किनारों की मुस्कान संग सपनों की आस कहानी दिलाती है उम्मीदों को तरानों की पहचान खयाल दिलाती है नजारों की सुबह दिलाती है।

किनारों की मुस्कान संग नजारों की राह इशारा दिलाती है खयालों को दिशाओं की धारा पुकार दिलाती है अफसानों की सुबह दिलाती है।

किनारों की मुस्कान संग दास्तानों की सोच कोशिश दिलाती है राहों को आवाजों की धून अरमान दिलाती है आशाओं की सुबह दिलाती है।

किनारों की मुस्कान संग लहरों की समझ उम्मीद दिलाती है अदाओं को राहों की अहमियत लहर दिलाती है जज्बातों की सुबह दिलाती है।

किनारों की मुस्कान संग उजियारों की पुकार कोशिश दिलाती है दास्तानों को नजारों की सरगम उम्मीद दिलाती है आवाजों की सुबह दिलाती है।

किनारों की मुस्कान संग जज्बातों की अदा अंदाज दिलाती है इशारों को राहों की रोशनी खयाल दिलाती है इरादों की सुबह दिलाती है।

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