Tuesday, 18 March 2025

कविता. ५४५०. दिशाओं को किनारों संग।

                             दिशाओं को किनारों संग।

दिशाओं को किनारों संग रोशनी कोशिश देकर जाती है आशाओं की सरगम अक्सर अरमानों की उमंग दिलाती है इशारों की आहट देकर जाती है।

दिशाओं को किनारों संग मुस्कान अफसाना देकर जाती है अंदाजों की पुकार अक्सर आवाजों की धून दिलाती है अदाओं की आहट देकर जाती है।

दिशाओं को किनारों संग सोच अहमियत देकर जाती है आवाजों की पहचान अक्सर बदलावों की लहर दिलाती है नजारों की आहट देकर जाती है।

दिशाओं को किनारों संग परख‌ उजाला देकर जाती है लहरों की कोशिश अक्सर अंदाजों की पुकार दिलाती है कदमों की आहट देकर जाती है।

दिशाओं को किनारों संग आस जज्बात देकर जाती है दास्तानों की धारा अक्सर अफसानों की उम्मीद दिलाती है एहसासों की आहट देकर जाती है।

दिशाओं को किनारों संग सौगात तलाश देकर जाती है खयालों की आस अक्सर तरानों की सरगम दिलाती है जज्बातों की आहट देकर जाती है।

दिशाओं को किनारों संग लहर तराना देकर जाती है कदमों की पहचान अक्सर उजालों की सुबह दिलाती है इरादों की आहट देकर जाती है।

दिशाओं को किनारों संग पहचान सहारा देकर‌ जाती है आशाओं की महफिल अक्सर लम्हों की आस दिलाती है राहों की आहट देकर जाती है।

दिशाओं को किनारों संग आवाज सपना देकर जाती है एहसासों की धारा अक्सर उम्मीदों की तलाश दिलाती है बदलावों की आहट देकर जाती है।

दिशाओं को किनारों संग कोशिश लम्हा देकर जाती है तरानों की पहचान अक्सर दास्तानों की समझ‌ दिलाती है धाराओं की आहट देकर जाती है।

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कविता. ५४७३. अफसानों को कदमों की।

                          अफसानों को कदमों की। अफसानों को कदमों की सौगात मुस्कान सुनाती है तरानों की सरगम संग कोशिश दिलाती है लम्हों को एहसा...