Monday, 13 October 2025

कविता. ५६५९. लहरों को पुकार संग।

                              लहरों को पुकार संग।

लहरों को पुकार संग पहचान इशारा दिलाती है लम्हों को अल्फाजों की तलाश दास्तान सुनाती है कदमों को अरमानों की महफिल दिलाती है।

लहरों को पुकार संग आवाज उजाला दिलाती है खयालों को सपनों की सुबह तराना सुनाती है उम्मीदों को तरानों की महफिल दिलाती है।

लहरों को पुकार संग सोच कोशिश दिलाती है इशारों को जज्बातों की पुकार अरमान सुनाती है नजारों को राहों की महफिल दिलाती है।

लहरों को पुकार संग उम्मीद तलाश दिलाती है दिशाओं को अंदाजों की आस इरादा सुनाती है अफसानों को अदाओं की महफिल दिलाती है।

लहरों को पुकार संग समझ मुस्कान दिलाती है कदमों को बदलावों की उम्मीद आवाज सुनाती है आशाओं को जज्बातों की महफिल दिलाती है।

लहरों को पुकार संग उमंग एहसास दिलाती है उजालों को नजारों की आहट सरगम सुनाती है उजालों को सपनों की महफिल दिलाती है।

लहरों को पुकार संग आस अरमान दिलाती है आशाओं को राहों की रोशनी पहचान सुनाती है धाराओं को उम्मीदों की महफिल दिलाती है।

लहरों को पुकार संग सुबह अफसाना दिलाती है इशारों को दिशाओं की आस अहमियत सुनाती है अल्फाजों को दास्तानों की महफिल दिलाती है।

लहरों को पुकार संग कहानी उम्मीद दिलाती है किनारों को अंदाजों की परख आवाज सुनाती है बदलावों को कदमों की महफिल दिलाती है।

लहरों को पुकार संग उमंग मुस्कान दिलाती है अफसानों को इरादों की सुबह कोशिश सुनाती है आशाओं को सपनों की महफिल दिलाती है।

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