Sunday, 5 October 2025

कविता. ५६५१. आवाज की पुकार अक्सर।

                        आवाज की पुकार अक्सर।

आवाज की पुकार अक्सर इशारा देकर जाती है जज्बातों को बदलावों की तलाश संग आस सुनाती है एहसासों को उमंग दिलाती है।

आवाज की पुकार अक्सर उजाला देकर जाती है कदमों को अल्फाजों की दुनिया संग सरगम सुनाती है तरानों को उमंग दिलाती है।

आवाज की पुकार अक्सर सपना देकर जाती है नजारों को लम्हों की कहानी संग पहचान सुनाती है इरादों को उमंग दिलाती है।

आवाज की पुकार अक्सर अंदाज देकर जाती है उजालों को आशाओं की महफिल संग सोच सुनाती है खयालों को उमंग दिलाती है।

आवाज की पुकार अक्सर परख देकर जाती है किनारों को अदाओं की अहमियत संग कोशिश सुनाती है राहों को उमंग दिलाती है।

आवाज की पुकार अक्सर अरमान देकर जाती है उम्मीदों को राहों की रोशनी संग अफसाना सुनाती है आशाओं को उमंग दिलाती है।

आवाज की पुकार अक्सर अल्फाज देकर जाती है दिशाओं को दास्तानों की दुनिया संग बदलाव सुनाती है अदाओं को उमंग दिलाती है।

आवाज की पुकार अक्सर मुस्कान देकर जाती है इशारों को आशाओं की महफिल संग सरगम सुनाती है कदमों को उमंग दिलाती है।

आवाज की पुकार अक्सर कहानी देकर जाती है दास्तानों को नजारों की आस संग जज्बात सुनाती है अंदाजों को उमंग दिलाती है।

आवाज की पुकार अक्सर बदलाव देकर जाती है अफसानों को कदमों की समझ संग सोच सुनाती है इशारों को उमंग दिलाती है।


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