Friday 10 February 2023

कविता. ४७१३. राह से जुड़कर।

                                          राह से जुड़कर।

राह से जुड़कर आशाओं कि सरगम दिशाएं देती है कदमों को उजालों कि आहट तराने देती है अरमानों को एहसासों कि रोशनी पुकार देती है।

राह से जुड़कर अदाओं कि कोशिश तलाश देती है किनारों को सपनों कि आस अफसाना देती है अंदाजों को बदलावों कि मुस्कान पुकार देती है।

राह से जुड़कर दास्तानों कि परख नजारा देती है लम्हों को खयालों कि समझ सपना देती है आवाजों को अदाओं कि सौगात पुकार देती है।

राह से जुड़कर किनारों कि सौगात तराना देती है इशारों को दास्तानों कि परख कहानी देती है नजारों को दिशाओं कि समझ पुकार देती है।

राह से जुड़कर तरानों कि सुबह किनारा देती है खयालों को अंदाजों कि सरगम सहारा देती है जज्बातों को एहसासों कि कोशिश पुकार देती है।

राह से जुड़कर उजालों कि तलाश सपना देती है कदमों को बदलावों कि सोच आस देती है अफसानों को उम्मीदों कि लहर पुकार देती है।

राह से जुड़कर इशारों कि कोशिश खयाल देती है आवाजों को लम्हों कि रोशनी सुबह देती है दास्तानों को अल्फाजों कि मुस्कान पुकार देती है।

राह से जुड़कर अंदाजों कि परख पहचान देती है किनारों को सपनों कि आस सौगात देती है किनारों को लहरों कि परख पुकार देती है।

राह से जुड़कर आवाजों कि सोच इशारा देती है नजारों को दिशाओं कि कहानी तराना देती है अंदाजों को बदलावों कि सोच पुकार देती है।

राह से जुड़कर सपनों कि सौगात बदलाव देती है अदाओं को दास्तानों कि परख रोशनी देती है नजारों को उजालों कि समझ पुकार देती है।

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