Wednesday, 19 November 2025

कविता. ५६९६. एक मुस्कान संग पहचान की।

                       एक मुस्कान संग पहचान की।

एक मुस्कान संग पहचान की कोशिश इशारा देकर जाती है कदमों को अल्फाजों की सरगम अक्सर एहसास की धारा देकर जाती है।

एक मुस्कान संग पहचान की रोशनी अरमान देकर जाती है आवाजों को बदलावों की पुकार अक्सर दास्तान की धारा देकर जाती है।

एक मुस्कान संग पहचान की आवाज परख देकर जाती है अरमानों को लम्हों की अहमियत अक्सर तलाश की धारा देकर जाती है।

एक मुस्कान संग पहचान की उमंग एहसास देकर जाती है दिशाओं को अंदाजों की आस अक्सर कोशिश की धारा देकर जाती है।

एक मुस्कान संग पहचान की आहट अफसाना देकर जाती है आशाओं को अरमानों की सोच अक्सर आवाज की धारा देकर जाती है।

एक मुस्कान संग पहचान की लहर इशारा देकर जाती है जज्बातों को नजारों की समझ अक्सर खयाल की धारा देकर जाती है।

एक मुस्कान संग पहचान की आस सरगम देकर जाती है आशाओं को उजालों की अहमियत अक्सर अदा की धारा देकर जाती है।

एक मुस्कान संग पहचान की सौगात तलाश देकर जाती है इरादों को सपनों की सोच अक्सर उम्मीद की धारा देकर जाती है।

एक मुस्कान संग पहचान की सुबह बदलाव देकर जाती है खयालों को दिशाओं की महफिल अक्सर जज्बात की धारा देकर जाती है।

एक मुस्कान संग पहचान की राह सरगम देकर जाती है लम्हों को अफसानों की आहट अक्सर सुबह की धारा देकर जाती है।

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कविता. ५६९९. आशाओं संग किनारों पर।

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