Saturday, 8 November 2025

कविता. ५६८५. आवाज संग अफसानों की।

                       आवाज संग अफसानों की।

आवाज संग अफसानों की सोच किनारा दिलाती है लहरों को खयालों से जुडकर समझ‌ तराना‌ सुनाकर आगे बढती जाती है।

आवाज संग अफसानों की उमंग नजारा दिलाती है जज्बातों को बदलावों से जुडकर आस अरमान सुनाकर आगे बढती जाती है।

आवाज संग अफसानों की परख‌‌ तलाश दिलाती है अदाओं को एहसासों से जुडकर सुबह पहचान सुनाकर आगे बढती जाती है।

आवाज संग अफसानों की मुस्कान पहचान दिलाती है इशारों को सपनों से जुडकर उम्मीद लम्हा सुनाकर आगे बढती जाती है।

आवाज संग अफसानों की समझ‌ सौगात दिलाती है राहों को किनारों से जुडकर आहट एहसास सुनाकर आगे बढती जाती है।

आवाज संग अफसानों की आस अंदाज दिलाती है आशाओं को नजारों से जुडकर रोशनी बदलाव सुनाकर आगे बढती जाती है।

आवाज संग अफसानों की सरगम कोशिश दिलाती है उजालों को दिशाओं से जुडकर मुस्कान अंदाज सुनाकर आगे बढती जाती है।

आवाज संग अफसानों की कहानी आस‌ दिलाती है तरानों को उम्मीदों से जुडकर सोच पहचान सुनाकर आगे बढती जाती है।

आवाज संग अफसानों की सौगात उम्मीद दिलाती है इरादों को लहरों से जुडकर तलाश सहारा सुनाकर आगे बढती जाती है।

आवाज संग अफसानों की अदा अरमान दिलाती है कदमों को अरमानों से जुडकर लहर बदलाव सुनाकर आगे बढती जाती है।

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कविता. ५६८८. एहसासों की कहानी अक्सर।

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