Saturday 6 August 2016

कविता. ८४९. बारीश को समझ लेना।

                                               बारीश को समझ लेना।
बारीश को समझ लेना जीवन कि कहानी को आवाज देता है कभी कभी धीमे से तो कभी कभी तेज आवाज मे जीवन के अंदर एहसास हर पल बदलता रहता है।
बारीश को समझ लेना ही तो मन कि जरुरत होती है जीवन कि हर सोच सूरज कि हर किरण के संग जीवन को उजाला देकर आगे बढती रहती है जो दुनिया को मतलब दे जाती है।
बारीश को समझ लेना ही तो बूँदों कि कहानी हर मोड पर अलग किसम कि उम्मीदे और साँसे देकर बढती है जो आगे चलती रहती है किस्मत मे अलग सोच देती है।
बारीश को समझ लेना ही बदलाव को समझ लेने कि शुरुआत होती है उस बदलाव को अलग किसम का एहसास देकर मकसद देकर वह आगे बढती रहती है।
बारीश को समझ लेना ही मौसम को समझकर आगे चलते जाने कि जरुरत लगती है जो जीवन कि दिशाए बदलकर आगे चलती जाती है उम्मीदों कि किरण देती है।
बारीश को समझ लेना ही तो जीवन को नई उम्मीदे दे जाता है जो जीवन को नई रफ्तार भरी सुबह हर बार और हर पल मे दे जाता है वह जीवन मे आगे ले जाता है।
बारीश को समझ लेना ही तो कहानी जीवन को अलग तरह कि होती है जो बूँदों के सहारे से नये किनारों को देकर आगे चलती है जो उम्मीदे देकर चलती रहती है।
बारीश को समझ लेना ही तो तरह तरह कि दिशाओं मे छुपी जरुरत होती है जो जीवन कि परछाई को अलग तरीके से आगे चलती है जीवन कि नई राह उजागर होती है।
बारीश को समझ लेना ही तो जीवन कि जरुरत होती है जो हमे हर बार हर पल ताकद दे जाती है जो हमे आगे लेकर जाती है हर पल उम्मीदों कि जरुरत होती है।
बारीश को समझ लेना ही तो जीवन कि जरुरत होती है जो हमे नये किनारों से आगे ले जाने कि उम्मीदे देकर चलती है कभी कम तो कभी ज्यादा देकर आगे बढती रहती है।

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