Saturday 14 January 2023

कविता. ४६८६. किनारों को सपनों कि।

                                किनारों को सपनों कि।

किनारों को सपनों कि पुकार सहारा दिलाती है खयालों कि कोशिश से अरमानों संग सोच सुनाती है लम्हों को दास्तानों कि पहचान दिलाती है।

किनारों को सपनों कि लहर अफसाना दिलाती है लहरों कि सरगम से अंदाजों संग इशारा सुनाती है तरानों को उम्मीदों कि पहचान दिलाती है।

किनारों को सपनों कि समझ अल्फाज दिलाती है नजारों कि सोच से एहसासों संग मुस्कान सुनाती है जज्बातों को कदमों कि पहचान दिलाती है।

किनारों को सपनों कि कोशिश आस दिलाती है दिशाओं कि समझ से खयालों संग अरमान सुनाती है उजालों को आशाओं कि पहचान दिलाती है।

किनारों को सपनों कि आवाज बदलाव दिलाती है लहरों कि सुबह से इरादों संग आस सुनाती है कदमों को अदाओं कि पहचान दिलाती है।

किनारों को सपनों कि सरगम दास्तान दिलाती है उम्मीदों कि लहर से अफसानों संग बदलाव सुनाती है तरानों को अरमानों कि पहचान दिलाती है।

किनारों को सपनों कि परख खयाल दिलाती है लम्हों कि पुकार से आवाजों संग पुकार सुनाती है नजारों को दिशाओं कि पहचान दिलाती है।

किनारों को सपनों कि सोच तलाश दिलाती है राहों कि कहानी से एहसासों संग मुस्कान सुनाती है इरादों को आशाओं कि पहचान दिलाती है।

किनारों को सपनों कि सुबह अदा दिलाती है बदलावों कि सौगात से नजारों संग जज्बात सुनाती है लम्हों को खयालों कि पहचान दिलाती है।

किनारों को सपनों कि पुकार कोशिश दिलाती है आशाओं कि समझ से इशारों संग आहट सुनाती है अंदाजों को दिशाओं कि पहचान दिलाती है।

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