Tuesday 17 January 2023

कविता. ४६८९. सपनों कि सुबह से।

                                           सपनों कि सुबह से।

सपनों कि सुबह से मुस्कान को तलाश दिलाती है दास्तानों से आशाओं कि सरगम पुकार सुनाती है लम्हों को खयालों कि समझ सुनाती है।

सपनों कि सुबह से आस को इशारा दिलाती है लहरों से अंदाजों कि परख पहचान सुनाती है इरादों को अदाओं कि समझ सुनाती है।

सपनों कि सुबह से जज्बात को कोशिश दिलाती है लम्हों को अरमानों कि लहर अहमियत सुनाती है तरानों को अरमानों कि समझ सुनाती है।

सपनों कि सुबह से किनारा को उमंग दिलाती है दिशाओं को कदमों कि आस एहसास सुनाती है नजारों को आवाजों कि समझ सुनाती है।

सपनों कि सुबह से अंदाज को रोशनी दिलाती है तरानों को उम्मीदों कि आवाज कोशिश सुनाती है उजालों को लहरों कि समझ सुनाती है।

सपनों कि सुबह से आवाज को धून दिलाती है जज्बातों को दिशाओं कि कहानी बदलाव सुनाती है आशाओं को कदमों कि समझ सुनाती है।

सपनों कि सुबह से परख को अल्फाज दिलाती है राहों को किनारों कि सोच सरगम सुनाती है एहसासों को उम्मीदों कि समझ सुनाती है।

सपनों कि सुबह से सौगात को अरमान दिलाती है नजारों को दास्तानों कि परख पहचान सुनाती है उजालों को दिशाओं कि समझ सुनाती है।

सपनों कि सुबह से कोशिश को आस दिलाती है लम्हों को अल्फाजों कि आवाज पुकार सुनाती है जज्बातों को किनारों कि समझ सुनाती है।

सपनों कि सुबह से अरमान को बदलाव दिलाती है अदाओं को तरानों कि सोच आवाज सुनाती है एहसासों को इशारों कि समझ सुनाती है।

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