Wednesday 5 April 2023

कविता. ४७६७. राहों कि मुस्कान जुड़कर।

                                     राहों कि मुस्कान जुड़कर।

राहों कि मुस्कान जुड़कर तरानों से आशाओं कि सरगम सुनाती है उम्मीदों को कदमों कि सौगात सहारा दिलाती है लहरों को इशारों कि समझ सपना देकर जाती है।

राहों कि मुस्कान जुड़कर आवाजों से कदमों कि आस सुनाती है जज्बातों को अंदाजों कि परख किनारा दिलाती है अंदाजों को बदलावों कि सोच सपना देकर जाती है।

राहों कि मुस्कान जुड़कर उजालों से अंदाजों कि रोशनी सुनाती है लम्हों को खयालों कि समझ अहमियत दिलाती है दास्तानों को एहसासों कि सुबह सपना देकर जाती है।

राहों कि मुस्कान जुड़कर जज्बातों से किनारों कि समझ सुनाती है कदमों को अदाओं कि पुकार आस दिलाती है आवाजों को लहरों कि सरगम सपना देकर जाती है।

राहों कि मुस्कान जुड़कर अंदाजों से खयालों कि सोच सुनाती है नजारों को दिशाओं कि कहानी कोशिश दिलाती है इशारों को अदाओं कि पुकार सपना देकर जाती है।

राहों कि मुस्कान जुड़कर दिशाओं से एहसासों कि पहचान सुनाती है उजालों को इरादों कि आहट सहारा दिलाती है आवाजों कि धून सपना देकर जाती है।

राहों कि मुस्कान जुड़कर अरमानों से जज्बातों कि सुबह सुनाती है तरानों को अल्फाजों कि आवाज सरगम दिलाती है बदलावों कि सौगात सपना देकर जाती है।

राहों कि मुस्कान जुड़कर नजारों से उम्मीदों कि आस सुनाती है आशाओं को खयालों कि परख अहमियत दिलाती है किनारों कि कोशिश सपना देकर जाती है।

राहों कि मुस्कान जुड़कर दास्तानों से अल्फाजों कि पुकार सुनाती है कदमों को उजालों कि आस पहचान दिलाती है दिशाओं कि कहानी सपना देकर जाती है।

राहों कि मुस्कान जुड़कर किनारों से अरमानों कि कोशिश सुनाती है इशारों को लम्हों कि पुकार अहमियत दिलाती है खयालों कि समझ सपना देकर जाती है।


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