Wednesday, 10 June 2015

कविता १ तलाश खुदकी

लिखतो लेंगे हम कई बाते पर क्या समज पाएगा कोई खुद को यह सवाल कभी किया करते थे
अब बस लिखा करते है कभी सोचते थे क्या कोई समजेगा हमारी बातो को आज कल बिन सोचे
बस तेरे लिए लिखा करते है
क्युकी तब चाहत थी वाह वाह सुनने की अब इतने तरसे है की परवाह नहीं क्युकी जब तक तू हमारे  साथ है
हमारे  खुदा  हमारे  मन को किसी बात की चिंता ही नहीं
आज तक तूने जो दिया है हमको उस पर ही तेरा शुक्रिया किया ही नहीं लोगो के कहने पर जो किया हमने वह हमें तेरे सजादेमे कभी लगा ही नहीं
हर मोड़ पर जब सही किया और गलत की खिलाफत की तू दिखा सिर्फ तभी बाकि किसी चीज़ में तू दिखा ही नहीं
हर मोड़ पर सिर्फ तेरी तलाश करने वालो को देखा पर हमे तेरी तलाश नहीं क्युकी तू तो हमारा वह दोस्त है
जो हमे छोड़ कर कभी दूर गया ही  नहीं तेरी क्या तलाश करे मेरे ईश्वर तू तो कभी गुम ही नहीं हर शुरआत में तू ही था
 और हर आखिर में तू था अफ़सोस उस बता का है ए दोस्त तुझे तलाशने वालो को तू दिखा क्यों नहीं
शायद वह अपनी ख़ुशी  तलाश ते थे और तू खुशियो में नहीं गमोमे ख़ुशी बनाके बैठा था कही
वह गमोसे किनारा कर के चले गये  तो उसमे क्या गलत है की उन्हें तू दिखा ही नहीं
बड़ी अजीब बात है जो खुद में ही समाया था वह उन्हें दिखा क्यों नहीं उस बात को समज न पाए हम कभी 

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