Wednesday, 24 June 2015

कविता ३२. सही मोड़

                                                                 सही मोड़
कुछ लोग समजते है और कुछ लोग समज  नहीं पाते है जिन्दगी में हर बार नयी राह अपने लिए लाते है
कुछ लोग हमारे आँसू में रोते है पर कुछ तो ऐसे भी होते है जो हसते  है हर बार हम चाहे वही नहीं होता है
कभी किस्मत चमकती है और कभी कभी इन्सान अपने मुकदर को रोता है पर जिन्दगी से सबसे मुश्किल तो सवाल होता है
जब लब्ज आधे अधूरे से होते है कुछ तो कहते है और कभी कभी चुप भी रह लेते है क्युकी हर आधी बात तो है
बस एक ऐसा मंजर जिस पे इन्सान हमेशा रुकते है थोड़ी देर फिर चल देते है आ फिर वह बात पूरी भी है
पर टूटे सपनों की आवाज की बजह से हम उसे न सुन पाते है हर मंजर पे कई लोग मिलते है कुछ हसाते है
और कुछ चोट देते है उन चोटों की बजह से शायद कई बार हम और आप सही आवाज को ही दबा देते है
काश कोई हमे समजाये कहा सही लोग रहते है क्युकी हर घर में दो तरह के किनारे एक ही मोड़ पर मिलते है
अच्छा और बुरा इतने करीब दिखे के जिन्दगी सच्चाई को समजना हम हर राह पर बहोत मुश्किलसा पाते है
रोशनी की तलाश तो है हर किसीको पर कुछ लोग उसे सब के लिए और कुछ लोग उसे सिर्फ अपने लिए चाहते है
हर बार जब हम किसी किनारे पर चले दोनों और हमें अलग नज़ारे है मिले हम हर बार नयी चीज़ खोजा करते है
हर बार नयी सोच ढूढ़ते है पर कुछ लोगों को इससे एतराज़ नहीं पर कुछ लोग तो इस पर भी एतराज़ करते है
किनारो में कई मोड़ हम समजते ही नहीं और कई मोडो को सिर्फ डर के ही अनदेखा किया करते है
जिन्दगी के राह पर कई मोड़ है सही और कई मोड़ो पर है उम्मीद खड़ी पर दुःख तो है की ऐसे भी सही मोड़ है
जिन पर हम चल सकते थे पर डर के चलते  क्यों हम उन्हें भुला देते है हर बार जो जिन्दगी ने कहा वह हम सुनते नहीं है
पर काश उस सही राह पर हम सुना लेते पर जब चारो ओर से गलत राह दिखे अक्सर लोग सिर्फ सीधे चलते है
और इस कोशिश में है की  सब कुछ हो सही वही सही मोड़ भुला देते है तो राह पर डरना ही गलत है दोस्तों पर फिर भी हम सब डरा करते है  

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