Saturday, 20 June 2015

कविता २४. कुछ कदम

                                                                  कुछ कदम                                            
कुछ कदम हम चलते है फिर रुक जाते है हर बार हम यही जिन्दगी में करते है हर बार जो कदम हम आगे बढ़ाते है
वही कदम हमारे लिए कुछ ना कुछ पाते है पर फिर भी कदम आगे बढ़ाने से हम डर जाते है वह कदम कभी कभी 
जो हमारा साथ देते है वही कभी पिछे मूड जाते है क्युकी शायद उन कदमों को वह हासील ही नहीं जो हम चाहते है 
और हर बार माँगते है कदम तो हर मोड़ पर चल दे लेकिन क्या वह कुछ भी हासील कर पाते है उन मोड़ पर चलाना 
कभी हमारे लिए मुमकिन ही नहीं क्युकी हर मोड़ पर हम जन्नत नहीं पाते है कदम तो आगे बढ़ाना है दोस्त पर किस ओर चलना है 
यही मुश्किल है कदम तो बस चलते है हर ओर से पर क्या हर बार वह सही ओर पे चलते है कभी हम आगे बढ़ते है 
कदम दर कदम जब हम आगे बढ़ते है पर जरुरी है की आगे बढ़ने की सही दिशा तो मिले जब हम जिन्दगी में आगे चले 
जरुरी है वह कदम सही राह पर चले कही गलत चल पड़े तो फिर  मुड़ना भी जरुरी होगा जिस कदम पे चल दे हम 
वह कदम सही ओर ले जाने के खातिर ही जरुरी होगा जाये किस ओर यही सवाल है इस जिन्दगी का हर कोई अपनी राह चुनता है 
हम तो बस यही दुआ करते है की हर किसीकी राह बस राह रहे गुनाह ना बने हम तो बस चल दिए है बिन सोचे समजे 
इसी हरकत कभी कोई ना करे मंजिल तो हम नहीं चुनते है हम दोस्तों पर राह तो हम ही चुनते है माना की किस्मत दिखती है 
पर कश्ती को तो हम ही चलाते है अगर गलत मोड़ पर मुड़ जाये तो भी उसे हम ही तो रोक सकते है 
तो कदम हमारे आगे बढ़ते रहे पर बस सही उनकी मंज़िल हो जब कोशिश करेंगे तो ही यह मुमकिन होगा क्यों की जिन्दगी इतनी आसान नहीं की सब हासील हो 

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