Monday, 15 June 2015

कविता १३. सच

                                                                   सच
सब सोचते  रहे है पर  यह जरुरी नहीं लगता जब हार रहे हो तब आप सच हो तो हार का गम नहीं होता
गुस्सा भी आता है मन जोर से चिल्लाता है चाहता है यह सब कहना पर फिर भी वह  गम नहीं होता
जो कहता है काश हम दूसरी राह पर चलते जो सही राह पर चलता है उसे राह बदलने का भरम नहीं होता
हम सोचते है हर पल सही राह पर चलते है तो मंज़िल भी क्यों नहीं मिलेगी पर सच कहे तो यह भरम नहीं होता
जो सच को चाहते है वह सच के चाह में ही खुश है सच तो एक इस तरह की चीज है जिस में गम नहीं होता
वह तो हर गम की दवा है क्युकी जानता मन का खुदा है ये सच तो सच है वह जूठ नही होता
तो जो सच को चाहता है वह उस चाहत में इतना खुश है उसको उस चाहत का कभी अफ़सोस नहीं होता
जो आधे राह पर सच को छोड़ के भागे जो आधे राह पर सच को कोसे वह कभी सच का साथी नही होता
चाहत को आधे राह पर भुला दे वह इस चाहत की राह का कोई भी किस्सा या फिर कोई हिस्सा नहीं होता
सच तो वह ताकद है जिस पे हर कोई  चल नहीं सकता जो उस आग पर चलते है उन्हें जलना तो है होता
पर उसे से  वह कभी बरबाद नहीं होते है आग में तप के वह निखरते है आग में उन्हें हर बार जलना है होता
सच तो मुश्किल होता है जो न समज पाये उसे सच की राह पर चलना बड़ा मुश्किल है होता
वह चल तो पड़ता है पर राह में मुसीबतों का मंजर तो होता है जो उसे ना समज पाये वह उस राह के काबिल नहीं होता
सच को समजना आसान नहीं होता क्युकी सच जो  समजता है  वह सच को हासिल करने के लिए हमेशा है लढता
जो सच के लिये कभी लड़ नहीं पाये उन्हें के लिए तो सच बस सपना है वह कभी हासिल नहीं होता
बिना मेहनत के जो मिल जाये वह हमने अक्सर देखा है सच का सिर्फ एक साया होता है सच नहीं होता
जो जल के हासिल होता है वही सच होता है तो बिना मेहनत के कभी किसीको दुनिया में सच हासिल नहीं होता 

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