Wednesday, 10 June 2015

कविता ४ अधूरी कहानी

                                                                अधूरी कहानी                                   
कुछ लब्ज अधूरे है पर उन्ही से शायद कहानी बने कुछ बाते अधूरी है पर शायद वही कोई निशानी बने
वक्त ना रुका था आपके  लिए ना हमारे  लिए रुकेगा कभी  कारवा आपके  लिए चला था अब हमारे लिए चलेगा
पर बात वह नहीं है के  कारवा किसके लिए होगा बात तो वह होगी की आपको यहाँ पर ऐसा क्या दिखा था
के आप इस तरह से मगरूर हो लिए हमे तो यहा  पर सिर्फ मजबूर ही मिले हमने कभी एक राह पर सुना था
मजबूर की बजाह है पर मगरूर की नहीं आप आज उस बात को दिखा के जा रहे है पर हमे उस बात का
अफ़सोस होगा आपने जिन्हे रुलाया आज उनका भी एक कारवा होगा हम समाज ना पाये किसीको रुलके
आपको हासील क्या होगा जीतना माना की आपकी चाहत भी होगी पर क्या आप यह ना समाज पाये
की बाद में हारना आपकी मजबूरी भी होगी अधूरे लब्जों की जब कहानी पूरी होगी हारना आपकी एक
मज़बूरी होगी
पर हम समज ना पाते है क्या तब भी आप में यह मगरूरी होगी हम जानते है आप में वह होगी
पर उस पल हमे परवाह ना होगी क्युकी जब कहानी पूरी होगी आपकी हरकतों से कोई निशानी भी ना होगी
पर हम समाज पाते है कोई कैसे सोच पाता है कैसे किसीको अपनो को रुलाना भी इतना भाता है
पर शायद आपको लगता है की सब कुछ आपका है बस अभी पर जरा रुकिए अभी आपको देखने है मंजर कयी
यह तो बस शुरवात थी बस कुछ लोगो के कहने से वह आखिर बनता नहीं अधूरी किताब पूरी होती है
किसी के कहने से उसे लिखना खुदा छोड़ता नहीं तू जिसे माने उसी ईश्वर ने लिखी है जो कहानी
उसे अधूरी छोड़ कर वह जाता नहीं सिर्फ किसीके कहने से अफ़साना रुकता नहीं क्युकी यह जंग जो है आपकी
हमसे नहीं उससे है जिसे रोज पूजते है आप क्युकी यह कहानी तो उसकी लिखी है हमारी नहीं 

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