Sunday 14 June 2015

कविता ११. कभी ना कभी

                                                      कभी ना कभी
हर बार मैंने गुस्से से देखा तेरी और पर फिर से हँसना सिखा देती है बड़ी गहरी चीज़ है तू जिन्दगी
तुज से नाराज भी ना रह पाये कभी
हर छोटी सी बात में तो हसा देती है तू तो तेरा आँसू भी भुला देती है तू जिन्दगी तेरे रंग कई पर हर रंग
हमे तेरे भाता है कभी ना कभी
जिद्द है हमारी हम जियेगे तुम्हे अपने दम पर हर बार बस कहते है यही पर तू चुपके से ले लेती है
वह सारा  हक्क हम से कभी ना कभी
अफ़सोस तो होता है तभी पर तू फिर से माना लेती है हमे तभी हम तो तेरे लिए सिर्फ एक बच्चा है
जो करता है जिद्द कभी ना कभी
पर हमे बता की तू क्यों हमारी बात मानती नहीं तेरी सुनते है  हम हर घड़ी तू ही  तो समझदार है ना 
माना कर हमारी बात कभी ना कभी
पर तू तो बस अपना ही किया करती  है हर बार हमे परेशान किया करती है यह भी कोई बात हुई
आसान रखा कर ये जिन्दगी कभी ना कभी
 जीत जाये तो मानते है होते है हासिल मुकाम कई पर बार बार यह मुसीबते जरुरी तो नहीं
माना कर तू भी हमारी बात कभी ना कभी
थक जाते है तेरे इन्तहानोसे से सभी अगर तू  आसान बन के दिखा दे हम सब को इस दुनिया में
कुछ मोड़ पे और कभी ना कभी
हम किसी को बताये की तू कभी आसान भी थी अब तो सब हस देते है जब हमने  यह बात कही
तू फिर आसान बने के दिखा कभी ना कभी
ता की लोग किया करे हमारा यकी  क्यों की जिन्दगी आसान नहीं कहते है आजकल सभी
तू आसान भी थी दिखा दे कभी ना कभी

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