Wednesday, 17 June 2015

कविता १७. वह चीज़

                                                                 वह चीज़
हर चीज जो हम चाहते है वह हासिल हो हमे यह जरुरी तो नहीं पर हर मोड़ में हम देखे की वह चीज
जो हम चाहे वह हमारे लिए अगर जरुरी नहीं है तो उसे पाना हमारी मज़बूरी नहीं है वह चीज
जिसे हम चाहे मिल जाये हमे तो शायद हमे ख़ुशी भी हासिल नहीं है क्युकी एक बात तो सच है वह चीज
शायद हमारे लिए इतनी अहम भी नहीं है जो जरुरी है वह बात हमे हासिल हो जाये यही चाहते थे वह चीज
फिर हमारे लिए अब क्यों जरुरी बनी है हर बार यह सोचा है मंजिल तो हमारी बस यही है वह चीज
तो सिर्फ दिखावे के लिए जरुरी है बार बार हम सोचते है तो फिर हमारे लिए वह चीज क्यों जरुरी थी
जब देखते है कई चीजो को कुछ देर बाद तो लगता है की वह चीज़ उतनी जरुरी  थी पर जब मांगी थी
तब इतना लगता था की वह बहुत जरुरी लगी थी मांगी थी जब कोई चीज़ तो सोच कर ही मांगी थी
पर अब लगता है आस पास कई चीज़े पड़ी  है जो घर में तो है हमारे और हमने जिद्द से हासिल की थी
पर अफ़सोस लगता है वह इतनी जरुरी नहीं थी शायद वह किसी ओर की जरूर भी होगी पर हमारे लिए जरुरी नहीं थी
कभी उसे अहम मान के लाये थे पर वह उतनी अहम नहीं थी हम सोचते की हमे उनकी जरूरत है लेकिन
शायद हमे उनकी कोई जरूरत नहीं थी हम जब सोच के चले थे हमारे लिए वह अहम हमे वह अहम ही लगी थी
पर आज इस मोड़ पर लगता है उनकी जरूरत नहीं थी किसी और को खोजे हम जिसके लिए वह अहम हो
यही सही होगा क्युकी हमारे लिए तो वह अहम नहीं थी वह चीज़े तो है हमारे पास पर उसकी कोई अहमियत नहीं थी
पर जब हमने ढूँढा किसीको जो उन्हें चाहता था तब वह चीज़े अहम लगी अच्छा लगा इस दिल को की किसीके लिए तो वह अहम थी
तो उस चीज़ को हमने दे दी और मन तस्सली हुयी की आज तो हमारे घर में बस वही चीज़े थी जो हमारे लिए अहम थी
जो चीज़ ना जरुरी उसे लाने की गलती तो हमने कर दी पर उसे लौटा के तस्सली है की हमारी गलती हमने समाज ली
सिर्फ चीज़ क्यों है रखनी अगर वह किसी के लिए जरुरी हो तो जब वह हमारे लिए कभी भी ना अहम थी 

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