Thursday 18 June 2015

कविता १९ . ज़माने के लिए

                                                            ज़माने के लिए
कभी सोचता है यह दिल के कोई उम्मीद रखे पर फिर डरता है कही वह ना टूटे हम यह बात तो समजते ही नहीं
क्यों डरता है यह इतना उम्मीदों के टूटने से क्यों काच का बन गया है यह दिल जो हर बार छोटीसी आहट से भी टूटे 
उसे मजबूत बनाना था ज़माने के लिए पर शायद उसे परिंदे भी आसानी से तोड़ गये मजबूत तो ना बन सका ये 
पर इतना आसान ना बनता तोड़ने के लिए हमे ही तो इसको समजाना था के यह समज जाये ज़माने को 
आसानी से वह तोड़ रहा है उन बजाओ के लिए जो हर बार बड़ी आसन सी होती है वह बड़ी आसान है ज़माने के लिए 
कोई दोस्त भी धोखा दे तो बड़ी बात बनी हमारे लिए पर ज़माने के लिए कुछ भी न था सिर्फ दोस्त ही था जो मिला था हमे 
सिर्फ एक छोटे फ़साने के लिए हम आगे बढ़ जाते है पर सोचते है कैसे दोस्त मिले थे हमे जिन्दगी में आगे बढ़ने के लिए 
पर जमाना कहता है सिर्फ दोस्त ही तो था क्या बड़ा हुआ रोने के लिए हमने जो बड़ी समजी वह छोटी बात है ज़माने के लिए 
पर बड़ा फ़साना है हमारे लिये हमने तो बड़ी सोच रखी थी दोस्ती के लिए उन्हों ने सोचा वह कुछ भी नहीं और फिर बुलाया दिखावे के लिए 
अगर दोस्ती अहम नहीं है तो फिर आगे बढ़ जाते बिना बुलाए हमे किसी बहाने के लिए पर दिखावा तो जरुरी था ज़माने के लिए 
कैसे अजीब दोस्त हमने पाये है कई जो दोस्ती करते है सिर्फ दिखावे के लिए उस बात क्या मतलब है जिन्दगी में 
 सच्ची नहीं है बस है दिखावे के लिए हम कभी दिखावे के लिए जीते ही नहीं हसते होगे कभी कभी दिखाने के लिए 
पर दोस्ती कोई खेल नहीं जो कर ले हम बस दिखावे के लिए वह दोस्त भी कोई दोस्त है जो दोस्त बने सिर्फ ज़माने के लिए 
दोस्त तो वह होता है जो अपने साथ हसता है और रोता है मुश्किल ही सही उसका मिलना पर हम नहीं करते दोस्ती दिखावे के लिए 
हम करते है उसे दुसरे को समज ने के लिए और इस उम्मीद पर करते है की हमे भी कोई मिले समजने के लिए 
दिल का हल बताने के लिए ना की सब के सामने दिखाने के लिए के कितने दोस्त हमने बनाये ज़माने से जताने  के लिए  

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