Monday 15 June 2015

कविता १४. हमारी जिन्दगी

                                                       हमारी जिन्दगी
हस के हम जो गुजार ले वह हमारी जिन्दगी थी  पर रो के गुजार रहे है वह हमारी जिन्दगी है
नहीं दोस्त हम सिर्फ नहीं रोते कभी कभी गुस्से से भी अपनी जान को परेशा है कर देते
जो हसने के लिए है उसे रोने को है दे दी कितनी हसी थी तो फिर क्यों हमने यू बिघाड दी
जब हस के चल सकते थे किनारे हमे मिल सकते थे पर हमने मुसीबतों के पहाड़ों में क्यू गुजारी
यह हमारी जिन्दगी जो अभी भी पास है हमारे क्यू अभी तो उसे हस के हम गुजरे कही
यह ना हो के बाद में सोचे की यू ही अफ़सोस में गुजर गयी ये जिन्दगी कभी रोने में और कभी
गुस्से में गुजर गयी हमारी पूरी जिन्दगी कभी फूलों को देखे कभी किनारो पे घूमे और कुछ मजे ले
कुछ उस तरह से गुजर जायेगी हमारी यह जिन्दगी अफ़सोस तो होता है के हमने कुछ गलत तरीके से
कुछ मोड़ पर गुजारी
है पर अभी जिन्दगी में कई मोड़ बाकी है उन मोडो में हमे कई मोके मिलेंगे जिन्दगी में कई बार हमे कई खूबसूरत नज़ारे मिलेंगे
आज हम कह दे की ख़ुशी से गुजरेगी तो आज भी बदल जायेगी हमारी यह जिन्दगी ख़ुशी से गुजरे
तो सही राह पे गुजरेगी हमारी यह जिन्दगी हम तो बस यही समझते है की हस हस के गुजरे
इस तरह की होगी हमारी जिन्दगी हर राह पर खुशियों की बारात बन के दिल को हसती है जिन्दगी
हमे लगता है की अगर हम चाहे तो हस के आगे आकर खुशियाँ दे जाये इस तरह से भी होती हमारी जिन्दगी
जब आगे चलेंगे तो नज़ारोमे भी खुशियाँ दे जाये इस तरह के मंजर होगे कई जो सचमुच में हमे
ख़ुशी दे जाये इस तरह से बनाये जिन्दगी इस तरफ उसे मोड दे की जन्नत बन जाये हमारी जिन्दगी
आखिर यह सब से बड़ी अनमोल देन है हमारे लिए हमारी है प्यारी और सबसे दुल्हरी हमारी जिन्दगी 

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