Wednesday 24 June 2015

कविता २९. हर बार जिन्दगी में

                                                                हर बार जिन्दगी में
कितनी बार हम जिन्दगी को समजे पर हर बार उस किताब में हम नये नये पन्ने है पाते पर हर बार
हर सोच को हम है पाते जिन्दगी ने बनाये है कितने तराने जब हम हसते है वहा हम रोने के भी तराने हर बार
हम मन से बार बार यही है पाते हर बार हम यही सोचते है रहते की जिन्दगी में कई किनारे हम हर बार
हम है पाते जिन्दगी में कई बार हम अलग तरह की सोच  हम है पाते जिन्दगी में  नयी सोच हर बार
हम है पाते क्युकी जिन्दगी आसान नहीं है जिन्दगी में कई तरह के तराने  जिन्दगी में हम है हर बार
कभी ना कभी हम है पाते जिन्दगी में कई मोड़ पर हम नयी सोच और नयी बाते है पर आँसू भी पाते है हर बार
जिन्दगी में कई बार वह रंग हमे है मिलते जिन्हे  सोचकर हम खुशियाँ है हम पाते  सोचते है हम शायद हर बार
हम जिन्दगी को नहीं समज पाते क्यों की जिन्दगी के आँखों में हम कुछ नयी खुशियाँ और आनंद पाते है हर बार
जिन्दगी की आँखों में आजतक ना देखी थी  इतनी सच्चाई हमने किसी वक्त में कभी वह सच्चाई पाते है हर बार
जिन्दगी के हर ओर हम कुछ नयी चीज़ हम हमेशा अपने लिए पाते है नयी सोच हम ख़ुशी मन से पाते है हर बार
पर फिर भी मन में उठते है कहाँ से जिन्दगी लाती है खोज के इतने हसी सपने टूटे मन को मलम मिलाता है हर बार
जो सोच भी ना सके इसी कल्पना मन में उठती है क्यों  बार बार जो अनजान है वह जाना पहचाना लगता है हर बार
काश जिन्दगी आये और दे इन सवालों के जवाब क्यों की इस खेल में तो हम कुछ भी नहीं समजे है हर बार
हम जानते है की समज जाते है समजदार पर अगर हम नहीं समजते तो काश जिन्दगी आ के  हमें  समजाये
इस बार
क्यों लगता है जैसे कोई है खड़ा मदत के लिए कोई है खड़ा मुसीबत में हमारे पर दिखता नहीं कोई भी हर बार

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१४६. सपनों को एहसासों की।

                               सपनों को एहसासों की। सपनों को एहसासों की कहानी कोशिश दिलाती है लहरों को इशारों की समझ सरगम सुनाती है उम्मीदों...