Tuesday 16 June 2015

कविता १६. किसके लिए

                                                               किसके  लिए
हर मोड़ पर कुछ दिखता है पर उसे खुद से  ना जोड़ ले काश हम समज सके वह इशारे ना थे हमारे लिए
कोई भी कुछ कहे अक्सर देखा है हमने उसे जोड़ देते है खुद से हम खुदा ने इतनी बड़ी बनाई है दुनिया सबके लिए
तो क्यों हर बात हम  मोड ले अपने ओर उसे बनाये सिर्फ अपने लिए इतनी बड़ी दुनिया में कई सारे मंजर है हमारे लिए
फिर क्यों हम हर बार कोसे अपने आपको हर हरे हुए मंजर के लिए और हर खोये किनारे के लिए
हर मोड़ पर कयी बाते हो चुकी है पर कभी लोग कोसते है किसी को भी उनके गलती के लिए
हम उस पल क्यों मानले की हम गलत थे जब हम जानते है यह आसान तरीका है बचने का ज़माने के लिए
जो गलत है वही गलत होगा क्या फर्क होता है पर कोई यह भी समजे की हम क्यों उस दिल को रुलाए सिर्फ उस ज़माने के लिए
जिस फुरसत नहीं थी मिली जब हमने चोट खायी थी तो अफ़सोस करने  के लिए  कभी हमारी गमो में रोने के लिए
जमाना तो जी रहा है बस अपनी धुन में उसे कहाँ  फुरसत है किसी के गमो में रुकने की रोने की किसी के लिए
कभी तो सोच लो अपने लिए दोस्तों, नहीं तो बस गालियाँ सुनगे दूसरों के लिए राम के लिए सुनना पर आजकल लोग सुनते है रावण के लिए
जिस के लिए करते हो तस्सली तो कर लो लढ रहे हो तुम किसके खातिर और किसके खिलाफ किसके  लिए
कही अपनों से ही न लढ लो किसी पराये के लिए हर बार हम जहाँ जाते है चोट खाते है तो हम खाए अपनो के लिए
हर बार जो बोले सारी बाते समज जाये अपनों के लिए दुश्मन न बनाओ सिर्फ अपनो  में सिर्फ किसी सपने के लिए

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