Tuesday, 20 June 2023

कविता. ४८४३. किनारों की पुकार अक्सर।

                                    किनारों की पुकार अक्सर।

किनारों की पुकार अक्सर आशाओं की सरगम सुनाती है दिशाओं को कदमों की तलाश सहारा देकर जाती है जज्बातों की आस अफसाना सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर अंदाजों की आस सुनाती है तरानों को उम्मीदों की कहानी पहचान देकर जाती है बदलावों की कोशिश अफसाना सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर इशारों की सौगात सुनाती है उजालों को सपनों की लहर उम्मीद देकर जाती है अंदाजों की परख अफसाना सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर उम्मीदों की सोच सुनाती है दास्तानों को एहसासों की रोशनी आस देकर जाती है खयालों की समझ अफसाना सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर दिशाओं की तलाश सुनाती है अंदाजों को जज्बातों की सोच आहट देकर जाती है नजारों की सौगात अफसाना सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर इशारों की समझ सुनाती है अदाओं को दिशाओं की समझ पहचान देकर जाती है इरादों की सुबह अफसाना सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर दास्तानों की परख सुनाती है लहरों को उजालों की राह कोशिश देकर जाती है अरमानों की आहट अफसाना सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर अरमानों की आवाज सुनाती है लम्हों को खयालों की समझ सपना देकर जाती है अंदाजों की आस अफसाना सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर उजालों की सुबह सुनाती है नजारों को बदलावों की मुस्कान उमंग देकर जाती है आवाजों की धून अफसाना सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर अदाओं की पहचान सुनाती है आशाओं को जज्बातों की समझ रोशनी देकर जाती है उम्मीदों की कहानी अफसाना सुनाती है।

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