Thursday 14 July 2022

कविता. ४५०२. किनारों से मिलकर।

                                  किनारों से मिलकर।

किनारों से मिलकर आशाओं का सहारा इशारा देता है तरानों को अंदाजों कि मुस्कान रोशनी दिलाती है लम्हों को अरमानों कि सौगात देकर जाती है।

किनारों से मिलकर अंदाजों का अफसाना सुबह देता है जज्बातों को कदमों कि आहट अल्फाज दिलाती है नजारों को एहसासों कि सौगात देकर जाती है।

किनारों से मिलकर अदाओं का एहसास राह देता है कदमों को तरानों कि परख पहचान दिलाती है दिशाओं को उजालों कि सरगम देकर जाती है।

किनारों से मिलकर आवाजों का धून सपना देता है दास्तानों को नजारों कि तलाश अरमान दिलाती है इशारों को अंदाजों कि सौगात देकर जाती है।

किनारों से मिलकर दिशाओं का तराना कोशिश देता है बदलावों को उम्मीदों कि सोच इरादा दिलाती है लहरों को अफसानों कि पुकार सौगात देकर जाती है।

किनारों से मिलकर लम्हों का सोच खयाल देता है नजारों को अदाओं कि पुकार कोशिश दिलाती है लम्हों को कदमों कि आहट सौगात देकर जाती है।

किनारों से मिलकर लहरों का बदलाव राह देता है इशारों को अरमानों कि समझ सुबह दिलाती है आवाजों को दिशाओं कि तलाश सौगात देकर जाती है।

किनारों से मिलकर इरादों का कोशिश परख देता है खयालों को उम्मीदों कि पहचान पुकार दिलाती है अंदाजों को इशारों कि पहचान सौगात देकर जाती है।

किनारों से मिलकर आवाजों का एहसास रोशनी देता है कदमों को नजारों कि उमंग सुबह दिलाती है तरानों को दिशाओं कि उम्मीद सौगात देकर जाती है।

किनारों से मिलकर नजारों का राह पुकार देता है अल्फाजों को बदलावों कि सोच इरादा दिलाती है कदमों को आशाओं कि धून सौगात देकर जाती है।


 

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