Saturday 9 July 2022

कविता. ४४९७. सरगम देती है।

                                      सरगम देती है।

लम्हों संग कोई मुस्कान सुनाई पडती है आशाओं को अदाओं कि पहचान दिखाई पडती है कदमों को दास्तानों कि सुबह जुड़कर एहसासों कि सरगम देती है।

लम्हों संग कोई कहानी सुनाई पडती है अंदाजों को इरादों कि तलाश दिखाई पडती है किनारों को आशाओं कि पुकार जुड़कर कोशिशों कि सरगम देती है।

लम्हों संग कोई सौगात सुनाई पडती है उम्मीदों को कदमों कि आहट दिखाई पडती है नजारों को अदाओं कि सौगात जुड़कर खयालों कि सरगम देती है।

लम्हों संग कोई सुबह सुनाई पडती है अदाओं को दिशाओं कि उमंग दिखाई पडती है जज्बातों को आवाजों कि धून जुड़कर दास्तानों कि सरगम देती है।

लम्हों संग कोई तलाश सुनाई पडती है उजालों को अल्फाजों कि सोच दिखाई पडती है बदलावों को इशारों कि परख जुड़कर लहरों कि सरगम देती है।

लम्हों संग कोई रोशनी सुनाई पडती है बदलावों को खयालों कि समझ दिखाई पडती है अल्फाजों को तरानों कि रोशनी जुड़कर अंदाजों कि सरगम देती है।

लम्हों संग कोई पहचान सुनाई पडती है नजारों को अदाओं कि कोशिश अरमान पडती है आशाओं को जज्बातों कि मुस्कान जुड़कर राहों कि सरगम देती है।

लम्हों संग कोई पुकार सुनाई पडती है आवाजों को कदमों कि आहट दिखाई पडती है उम्मीदों को उजालों कि समझ जुड़कर बदलावों कि सरगम देती है।

लम्हों संग कोई कोशिश सुनाई पडती है अदाओं को सपनों कि राह दिखाई पडती है किनारों को अंदाजों कि आस जुड़कर आशाओं कि सरगम देती है।

लम्हों संग कोई अल्फाज सुनाती पडती है खयालों को तरानों कि लहर दिखाई पडती है एहसासों को इशारों कि सौगात जुड़कर कदमों कि सरगम देती है।


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