Monday, 4 July 2022

कविता. ४४९२. किनारों को दास्तानों कि राह।

                           किनारों को दास्तानों कि राह।

किनारों को दास्तानों कि राह इशारा देती है अंदाजों को जज्बातों कि मुस्कान रोशनी दिलाती है आशाओं को एहसासों कि पहचान पुकार देती है।

किनारों को दास्तानों कि राह आस देती है जज्बातों को आशाओं कि परख अल्फाज दिलाती है कोशिश को अंदाजों कि उम्मीद पुकार देती है।

किनारों को दास्तानों कि राह कोशिश देती है तरानों को उम्मीदों कि सोच सरगम दिलाती है नजारों को आवाजों कि धून पुकार देती है।

किनारों को दास्तानों कि राह अरमान देती है अदाओं को अरमानों कि धाराएं अफसाना दिलाती है लम्हों को खयालों कि मुस्कान पुकार देती है।

किनारों को दास्तानों कि राह अदा देती है दिशाओं को उजालों कि आस खयाल दिलाती है सपनों को इशारों कि सोच पुकार देती है।

किनारों को दास्तानों कि राह आवाज देती है इशारों को इरादों कि तलाश आस दिलाती है कदमों को अल्फाजों कि सुबह पुकार देती है।

किनारों को दास्तानों कि राह रोशनी देती है उम्मीदों को अदाओं कि समझ सरगम दिलाती है बदलावों को उमंग कि उड़ान पुकार देती है।

किनारों को दास्तानों कि राह अंदाज देती है उजालों को लम्हों कि रोशनी सपना दिलाती है कदमों को दिशाओं कि परख पुकार देती है।

किनारों को दास्तानों कि राह बदलाव देती है लहरों को अल्फाजों कि सुबह आस दिलाती है अदाओं को सपनों कि सरगम पुकार देती है।

किनारों को दास्तानों कि राह उमंग देती है सपनों को आशाओं कि सौगात तलाश दिलाती है नजारों को अरमानों कि सोच पुकार देती है।

  

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