Friday 15 July 2022

कविता. ४५०३. तरानों कि पुकार।

                                       तरानों कि पुकार।

तरानों कि पुकार सरगम दिलाती है दिशाओं को उजालों कि परख पहचान सुनाती है अदाओं से जुड़कर कदमों कि आहट अफसाना दिलाती है।

तरानों कि पुकार कोशिश दिलाती है दास्तानों को राहों कि तलाश खयाल सुनाती है लम्हों से जुड़कर किनारों कि सुबह अफसाना दिलाती है।

तरानों कि पुकार सौगात दिलाती है अंदाजों को इरादों कि कोशिश अरमान सुनाती है नजारों से जुड़कर सोच कि मुस्कान अफसाना दिलाती है।

तरानों कि पुकार उजाला दिलाती है अदाओं को कदमों कि आहट आस सुनाती है दिशाओं से जुड़कर जज्बातों कि लहर अफसाना दिलाती है।

तरानों कि पुकार सहारा दिलाती है नजारों को आवाजों कि धून एहसास सुनाती है दास्तानों से जुड़कर अरमानों कि धाराएं अफसाना दिलाती है।

तरानों कि पुकार किनारा दिलाती है राहों को सपनों कि कहानी सोच सुनाती है आशाओं से जुड़कर इशारों कि पहचान अफसाना दिलाती है।

तरानों कि पुकार इशारा दिलाती है बदलावों को उम्मीदों कि सौगात अरमान सुनाती है राहों से जुड़कर नजारों कि कोशिश अफसाना दिलाती है।

तरानों कि पुकार अल्फाज दिलाती है आशाओं को एहसासों कि परख इरादा सुनाती है आवाजों से जुड़कर दिशाओं कि उमंग अफसाना दिलाती है।

तरानों कि पुकार सुबह दिलाती है अदाओं को लम्हों कि कहानी कोशिश सुनाती है अरमानों से जुड़कर खयालों कि अहमियत अफसाना दिलाती है।

तरानों कि पुकार दास्तान दिलाती है आशाओं को लहरों कि सुबह पहचान सुनाती है अंदाजों से जुड़कर लम्हों कि रोशनी अफसाना दिलाती है।


 

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