Monday 16 May 2022

कविता. ४४४३. सुबह के एहसास संग।

                               सुबह के एहसास संग।

सुबह के एहसास संग आशाओं कि रोशनी खयाल दिलाती है कदमों को दास्तानों कि आहट पुकार सुनाती है अल्फाजों से जुड़कर आस दिलाती है।

सुबह के एहसास संग आवाजों कि धून मुस्कान दिलाती है किनारों को अंदाजों कि सरगम पहचान सुनाती है नजारों से जुड़कर आस दिलाती है।

सुबह के एहसास संग जज्बातों कि लहर पहचान दिलाती है सपनों को नजारों कि सौगात आवाज सुनाती है तरानों से जुड़कर आस दिलाती है।

सुबह के एहसास संग दिशाओं कि उमंग अरमान दिलाती है दास्तानों को बदलावों कि उम्मीद राह सुनाती है लम्हों से जुड़कर आस दिलाती है।

सुबह के एहसास संग नजारों कि तलाश अफसाना दिलाती है अंदाजों को इशारों कि सोच इशारा सुनाती है अदाओं से जुड़कर आस दिलाती है।

सुबह के एहसास संग राहों कि सरगम खयाल दिलाती है बदलावों को उजालों कि परख कोशिश सुनाती है तरानों से जुड़कर आस दिलाती है।

सुबह के एहसास संग बदलावों कि उमंग सरगम दिलाती है खयालों को उम्मीदों कि सुबह किनारा सुनाती है आवाजों से जुड़कर आस दिलाती है।

सुबह के एहसास संग कदमों कि आहट अल्फाज दिलाती है किनारों को अंदाजों कि सौगात बदलाव सुनाती है नजारों से जुड़कर आस दिलाती है।

सुबह के एहसास संग लहरों कि परख अहमियत दिलाती है सपनों को बदलावों कि सोच इरादा सुनाती है जज्बातों से जुड़कर आस दिलाती है।

सुबह के एहसास संग दास्तानों कि कोशिश नजारा दिलाती है लम्हों को कदमों कि आहट पहचान सुनाती है अरमानों से जुड़कर आस दिलाती है।

 

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