Friday, 6 May 2022

कविता. ४४३४. दास्तानों कि सुबह संग।

                               दास्तानों कि सुबह संग।

दास्तानों कि सुबह संग आवाजों कि सोच इरादा दिलाती है कदमों कि राह अक्सर तराना सुनाती है लम्हों को अरमानों कि धाराएं अंदाज दिलाती है।

दास्तानों कि सुबह संग आशाओं कि मुस्कान कोशिश दिलाती है लहरों कि पुकार अक्सर आस सुनाती है नजारों को अदाओं कि समझ अंदाज दिलाती है।

दास्तानों कि सुबह संग जज्बातों कि लहर सौगात दिलाती है सपनों कि सरगम अक्सर तलाश सुनाती है खयालों को उम्मीदों कि सोच अंदाज दिलाती है।

दास्तानों कि सुबह संग तरानों कि राह अफसाना दिलाती है किनारों कि पहचान अक्सर अल्फाज सुनाती है बदलावों को इशारों कि परख अंदाज दिलाती है।

दास्तानों कि सुबह संग अरमानों कि धाराएं बदलाव दिलाती है आशाओं कि मुस्कान अक्सर इशारा सुनाती है तरानों को कदमों कि पुकार अंदाज दिलाती है।

दास्तानों कि सुबह संग उजालों कि पहचान खयाल दिलाती है एहसासों कि तलाश अक्सर कोशिश सुनाती है राहों को जज्बातों कि लहर अंदाज दिलाती है।

दास्तानों कि सुबह संग उम्मीदों कि परख कोशिश दिलाती है अदाओं कि समझ अक्सर अरमान सुनाती है नजारों को आशाओं कि मुस्कान अंदाज दिलाती है।

दास्तानों कि सुबह संग नजारों कि आस पहचान दिलाती है तरानों कि सरगम अक्सर लम्हा सुनाती है जज्बातों को दिशाओं कि उमंग अंदाज दिलाती है।

दास्तानों कि सुबह संग बदलावों कि उमंग अरमान दिलाती है लहरों कि सौगात अक्सर किनारा सुनाती है खयालों को उम्मीदों कि सोच अंदाज दिलाती है।

दास्तानों कि सुबह संग लहरों कि पुकार अल्फाज दिलाती है सपनों कि सरगम अक्सर एहसास सुनाती है तरानों को आवाजों कि धून अंदाज दिलाती है।

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