Monday, 2 May 2022

कविता. ४४३०. आवाज अक्सर मन मे ही।

                            आवाज अक्सर मन मे ही।

आवाज अक्सर मन मे ही सुबह मिल जाती है जब दिल कि सरगम कोई अनोखी सरगम सुनाती है तरानों संग खयालों कि उम्मीद मुस्कान जगाती है।

आवाज अक्सर मन मे ही कोशिश रहती है जब आशाओं कि उम्मीद कोई अनोखी पहचान सुनाती है नजारों संग इरादों कि पुकार मुस्कान जगाती है।

आवाज अक्सर मन मे ही पुकार बन जाती है जब जज्बातों कि लहर कोई अनोखी सोच सुनाती है उजालों संग एहसासों कि तलाश मुस्कान जगाती है।

आवाज अक्सर मन मे ही सरगम मिल जाती है जब राहों कि तलाश कोई अनोखी परख सुनाती है उम्मीदों संग आशाओं कि पहचान मुस्कान जगाती है।

आवाज अक्सर मन मे ही सौगात बन जाती है जब किनारों कि सोच कोई अनोखी उमंग सुनाती है बदलावों संग आवाजों कि कोशिश मुस्कान जगाती है।

आवाज अक्सर मन मे ही समझ रहती है जब कोशिश कि परख कोई अनोखी पहचान सुनाती है तरानों संग खयालों कि अहमियत मुस्कान जगाती है।

आवाज अक्सर मन मे ही कोशिश मिल जाती है जब लम्हों कि पुकार कोई अनोखी राह सुनाती है इशारों संग कदमों कि सौगात मुस्कान जगाती है।

आवाज अक्सर मन मे ही बदलाव बन जाती है जब लहरों कि आस कोई अनोखी उम्मीद सुनाती है उजालों संग एहसासों कि सोच मुस्कान जगाती है।

आवाज अक्सर मन मे ही रोशनी मिल जाती है जब आशाओं कि पुकार कोई अनोखी आस सुनाती है इशारों संग अदाओं कि समझ मुस्कान जगाती है।

आवाज अक्सर मन मे ही पहचान बन जाती है जब किनारों कि सोच कोई अनोखी पुकार सुनाती है नजारों संग आशाओं कि कोशिश मुस्कान जगाती है।

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