Wednesday 4 May 2022

कविता. ४४३२. किनारों से आशाओं कि सरगम।

                  किनारों से आशाओं कि सरगम।

किनारों से आशाओं कि सरगम दास्तान दिलाती है राहों को अरमानों कि धाराएं अफसाना सुनाती है तरानों को अंदाजों कि सौगात सपना देकर जाती है।

किनारों से आशाओं कि सरगम कोशिश दिलाती है कदमों को आवाजों कि धून एहसास सुनाती है जज्बातों को खयालों कि उम्मीद सपना देकर जाती है।

किनारों से आशाओं कि सरगम सौगात दिलाती है दिशाओं को उजालों कि सुबह कोशिश सुनाती है नजारों को एहसासों कि लहर सपना देकर जाती है।

किनारों से आशाओं कि सरगम परख दिलाती है एहसासों को अदाओं कि समझ बदलाव सुनाती है बदलावों को इशारों कि पुकार सपना देकर जाती है।

किनारों को आशाओं कि सरगम आस दिलाती है लम्हों को दास्तानों कि आस सौगात सुनाती है अरमानों को इरादों कि तलाश सपना देकर जाती है।

किनारों को आशाओं कि सरगम रोशनी दिलाती है लहरों को अफसानों कि सोच इरादा सुनाती है अंदाजों को कदमों कि पहचान सपना देकर जाती है।

किनारों को आशाओं कि सरगम नजारा दिलाती है खयालों को उम्मीदों कि मुस्कान आहट सुनाती है राहों को अल्फाजों कि धाराएं सपना देकर जाती है।

किनारों को आशाओं कि सरगम मुस्कान दिलाती है कदमों को आवाजों कि धून आस सुनाती है तरानों को उजालों कि समझ सपना देकर जाती है।

किनारों को आशाओं कि सरगम लहर दिलाती है दिशाओं को इरादों कि सौगात बदलाव सुनाती है आवाजों को लम्हों कि रोशनी सपना देकर जाती है।

किनारों को आशाओं कि सरगम अल्फाज दिलाती है राहों को एहसासों कि तलाश पहचान सुनाती है नजारों को अदाओं कि पुकार सपना देकर जाती है।

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