Wednesday 18 May 2022

कविता. ४४४५. राहों कि सोच अक्सर।

                              राहों कि सोच अक्सर।

राहों कि सोच अक्सर बदलावों कि उमंग दिलाती है लम्हों संग खयालों कि उम्मीद आवाज दिलाती है नजारों को एहसासों कि तलाश पुकार देकर जाती है।

राहों कि सोच अक्सर कदमों कि आहट दिलाती है सपनों संग आसमानों कि समझ सरगम दिलाती है जज्बातों को दिशाओं कि उमंग पुकार देकर जाती है।

राहों कि सोच अक्सर लहरों कि सुबह दिलाती है तरानों संग किनारों कि पहचान मुस्कान दिलाती है बदलावों को इशारों कि सौगात पुकार देकर जाती है।

राहों कि सोच अक्सर दास्तानों कि समझ दिलाती है नजारों संग आशाओं कि आस अल्फाज दिलाती है अदाओं को लम्हों कि रोशनी पुकार देकर जाती है। 

राहों कि सोच अक्सर जज्बातों कि परख दिलाती है जज्बातों संग एहसासों कि तलाश पहचान दिलाती है इरादों को अंदाजों कि राह पुकार देकर जाती है।

राहों कि सोच अक्सर एहसासों कि आस दिलाती है अल्फाजों संग आवाजों कि धून अरमान दिलाती है उम्मीदों को आशाओं कि सुबह पुकार देकर जाती है।

राहों कि सोच अक्सर दिशाओं कि उमंग दिलाती है उम्मीदों संग आशाओं कि परख बदलाव दिलाती है नजारों को अदाओं कि समझ पुकार देकर जाती है।

राहों कि सोच अक्सर इरादों कि पहचान दिलाती है बदलावों संग कदमों कि सौगात आस दिलाती है लहरों को अरमानों कि धाराएं पुकार देकर जाती है।

राहों कि सोच अक्सर कदमों कि सुबह दिलाती है नजारों संग आवाजों कि धून एहसास दिलाती है सपनों को जज्बातों कि कोशिश पुकार देकर जाती है।

राहों कि सोच अक्सर बदलावों कि उम्मीद दिलाती है लहरों संग अफसानों कि सौगात आवाज दिलाती है दास्तानों को रोशनी कि पहचान पुकार देकर जाती है।

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