Saturday, 13 September 2025

कविता. ५६२९. दास्तान से जुडकर कोई।

                            दास्तान से जुडकर कोई।

दास्तान से जुडकर कोई मुस्कान अरमान दिलाती है जज्बातों को बदलावों की आस एहसास सुनाती है उम्मीद की सौगात देकर जाती है।

दास्तान से जुडकर कोई आवाज पुकार दिलाती है लहरों को खयालों की सरगम अफसाना सुनाती है कोशिश की सौगात देकर जाती है।

दास्तान से जुडकर कोई उमंग पहचान दिलाती है दिशाओं को किनारों की राह अल्फाज सुनाती है अदा की सौगात देकर जाती है।

दास्तान से जुडकर कोई सोच अंदाज दिलाती है आशाओं को तरानों की सुबह सपना सुनाती है उमंग की सौगात देकर जाती है।

दास्तान से जुडकर कोई रोशनी तलाश दिलाती है अंदाजों को उजालों की परख खयाल सुनाती है आवाज की सौगात देकर जाती है।

दास्तान से जुडकर कोई आहट नजारा दिलाती है इरादों को कदमों की पहचान बदलाव सुनाती है उम्मीद की सौगात देकर जाती है।

दास्तान से जुडकर कोई उम्मीद लम्हा दिलाती है अफसानों को जज्बातों की कहानी लहर‌ सुनाती है राह की सौगात देकर जाती है।

दास्तान से जुडकर कोई समझ इशारा दिलाती है नजारों को सपनों की उमंग अहमियत सुनाती है सुबह की‌ सौगात देकर जाती है।

दास्तान से जुडकर कोई आस तराना‌‌ दिलाती है आशाओं को किनारों की परख सोच सुनाती है आवाज की सौगात देकर जाती है।

दास्तान से जुडकर कोई लहर नजारा दिलाती है दिशाओं को सपनों की आहट कोशिश सुनाती है समझ की सौगात देकर जाती है।

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