Monday, 8 September 2025

कविता. ५६२४. तरानों की पुकार से मिलकर।

                        तरानों की पुकार से मिलकर।

तरानों की पुकार से मिलकर सपनों की आहट कोशिश सुनाती है लम्हों को अरमानों की धारा जज्बात दिलाती है।

तरानों की‌ पुकार से मिलकर आशाओं की महफिल पहचान सुनाती है नजारों को राहों की दिशा जज्बात दिलाती है।

तरानों की पुकार से मिलकर आवाजों की सरगम तलाश सुनाती है अंदाजों को सपनों की कोशिश जज्बात दिलाती है।

तरानों की पुकार से मिलकर खयालों की रोशनी अरमान सुनाती है अदाओं को एहसासों की परख जज्बात दिलाती है।

तरानों की पुकार से मिलकर उजालों की सोच इरादा सुनाती है बदलावों को उम्मीदों की अहमियत जज्बात दिलाती है।

तरानों की पुकार से मिलकर अंदाजों की आस अफसाना सुनाती है इशारों को लम्हों की सुबह जज्बात दिलाती है।

तरानों की पुकार से मिलकर लहरों की धून बदलाव सुनाती है कदमों को दास्तानों की आहट जज्बात दिलाती है।

तरानों की पुकार से मिलकर अरमानों की पहचान उमंग सुनाती है किनारों को इरादों की सरगम जज्बात दिलाती है।

तरानों की पुकार से मिलकर किनारों की मुस्कान तलाश सुनाती है एहसासों को कदमों की आस जज्बात दिलाती है।

तरानों की पुकार से मिलकर इशारों की आस पहचान सुनाती है बदलावों को धाराओं की समझ जज्बात दिलाती है।

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कविता. ५६३०. कदमों की सौगात संग।

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