Tuesday, 9 September 2025

कविता. ५६२५. सपनों की सुबह संग।

                             सपनों की सुबह संग।

सपनों की सुबह संग उम्मीद आशाओं से जुडकर एहसास दिलाती है लम्हों को अल्फाजों की दुनिया सरगम सुनाती है।

सपनों की सुबह संग पुकार अरमानों से जुडकर आवाज दिलाती है दास्तानों को नजारों की मुस्कान सरगम सुनाती है।

सपनों की सुबह संग उमंग अंदाजों से जुडकर खयाल‌ दिलाती है जज्बातों को बदलावों की आहट सरगम सुनाती है।

सपनों की सुबह संग कोशिश दिशाओं से जुडकर मुस्कान दिलाती है तरानों को कदमों की अहमियत सरगम सुनाती है।

सपनों की सुबह संग आवाज नजारों से जुडकर कोशिश दिलाती है इशारों को अदाओं की धून सरगम सुनाती है।

सपनों की सुबह संग सोच उजालों से जुडकर दास्तान दिलाती है लहरों को उम्मीदों की पहचान सरगम सुनाती है।

सपनों की सुबह संग आस इशारों से जुडकर अफसाना दिलाती है किनारों को राहों की महफिल सरगम सुनाती है।

सपनों की सुबह संग तलाश तरानों से जुडकर उजाला दिलाती है बदलावों को धाराओं की उमंग सरगम सुनाती है।

सपनों की सुबह संग सौगात अंदाजों से जुडकर लहर दिलाती है अफसानों को खयालों की आवाज सरगम सुनाती है।

सपनों की सुबह संग पहचान लम्हों से जुडकर रोशनी दिलाती है अरमानों को लहरों की दास्तान सरगम सुनाती है।

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