Sunday, 21 September 2025

कविता. ५६३७. अफसानों को किनारों की।

                          अफसानों को किनारों की।

अफसानों को किनारों की लहर इरादा देती है जज्बातों को कदमों की मुस्कान अक्सर तराना‌ सुनाकर आगे बढती है।

अफसानों को किनारों की पहचान अंदाज देती है आवाजों को धाराओं की समझ अक्सर अरमान सुनाकर आगे बढती है।

अफसानों को किनारों की सौगात आस देती है बदलावों को नजारों की आहट अक्सर जज्बात सुनाकर आगे बढती है।

अफसानों को किनारों की उमंग मुस्कान देती है अंदाजों को जज्बातों की रोशनी अक्सर पुकार सुनाकर आगे बढती है।

अफसानों को किनारों की सुबह आवाज देती है लम्हों को दिशाओं की महफिल अक्सर बदलाव सुनाकर आगे बढती है।

अफसानों को किनारों की राह दास्तान देती है इशारों को उजालों की सरगम अक्सर अल्फाज सुनाकर आगे बढती है।

अफसानों को किनारों की सौगात तलाश देती है अदाओं को एहसासों की कोशिश अक्सर इरादा सुनाकर आगे बढती है।

अफसानों को किनारों की आहट खयाल देती है सपनों को खयालों की महफिल अक्सर मुस्कान सुनाकर आगे बढती है।

अफसानों को किनारों की आस अरमान देती है नजारों को दिशाओं की समझ अक्सर उम्मीद सुनाकर आगे बढती है।

अफसानों को किनारों की तलाश जज्बात देती है आशाओं को आवाजों की धून अक्सर दास्तान सुनाकर आगे बढती है।

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