Saturday 12 March 2022

कविता. ४३७९. खयाल के एहसास से।

                                                      खयाल के एहसास से।

खयाल के एहसास से मिलकर पुकार इशारा देती है लहरों को अफसानों कि सौगात पहचान सुनाती है राह को किनारा दिलाती है।

खयाल के एहसास से जुड़कर कोशिश तराना देती है कदमों को दास्तानों कि सुबह अल्फाज सुनाती है आशाओं को किनारा दिलाती है।

खयाल के एहसास से समझकर अदा सपना देती है तरानों को उम्मीदों कि सोच अहमियत सुनाती है दास्तानों को किनारा दिलाती है।

खयाल के एहसास से सुनकर सरगम आवाज देती है लम्हों को कोशिश कि राह एहसास सुनाती है तरानों को किनारा दिलाती है।

खयाल के एहसास से मिलकर सौगात तलाश देती है नजारों को आवाजों कि धून कोशिश सुनाती है जज्बातों को किनारा दिलाती है।

खयाल के एहसास से जुड़कर सुबह जज्बात देती है राहों को अरमानों कि सोच पहचान सुनाती है बदलावों को किनारा दिलाती है।

खयाल के एहसास से समझकर उमंग आस देती है आवाजों को लम्हों कि परख बदलाव सुनाती है उजालों को किनारा दिलाती है।

खयाल के एहसास से मिलकर राह अरमान देती है जज्बातों को अंदाजों कि उम्मीद सहारा सुनाती है दिशाओं को किनारा दिलाती है।

खयाल के एहसास से सुनकर उम्मीद आवाज देती है सपनों को नजारों कि आस पुकार सुनाती है अंदाजों को किनारा दिलाती है।

खयाल के एहसास से जुड़कर पहचान राह देती है उजालों को अल्फाजों कि सोच इरादा सुनाती है नजारों को किनारा दिलाती है।

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