Saturday 5 March 2022

कविता. ४३७२. जब लहर अक्सर।

                                                           जब लहर अक्सर।              

जब लहर अक्सर अरमानों कि पुकार संग पहचान जगाती है दास्तानों को बदलावों कि उमंग एहसास सुनाती है जज्बातों कि आहट मुस्कान दिलाती है।

जब लहर अक्सर अफसानों कि सौगात संग परख जगाती है अदाओं को सपनों कि कोशिश अहमियत सुनाती है तरानों कि रोशनी मुस्कान दिलाती है।

जब लहर अक्सर दास्तानों कि सुबह संग अरमान जगाती है आशाओं को नजारों कि पुकार पहचान सुनाती है आवाजों कि धून मुस्कान दिलाती है।

जब लहर अक्सर अंदाजों कि उम्मीद संग अल्फाज जगाती है दिशाओं को उजालों कि परख राह सुनाती है अदाओं कि समझ मुस्कान दिलाती है।

जब लहर अक्सर आशाओं कि राह संग खयाल जगाती है जज्बातों को अंदाजों कि उम्मीद आवाज सुनाती है लम्हों कि अल्फाज मुस्कान दिलाती है।

जब लहर अक्सर नजारों कि सोच संग आस जगाती है कदमों को खयालों कि बदलाव सपना सुनाती है आशाओं कि सरगम मुस्कान दिलाती है।

जब लहर अक्सर अल्फाजों कि सरगम संग कोशिश जगाती है बदलावों को राहों कि तलाश उमंग सुनाती है इशारों कि पहचान मुस्कान दिलाती है।

जब लहर अक्सर दिशाओं कि दास्तान संग नजारा जगाती है कदमों को आवाजों कि धून इरादा सुनाती है किनारों कि पुकार मुस्कान दिलाती है।

जब लहर अक्सर अदाओं कि समझ संग सुबह जगाती है अंदाजों को रोशनी कि सौगात आस सुनाती है उजालों कि राह मुस्कान दिलाती है।

जब लहर अक्सर अल्फाजों कि सोच संग अफसाना जगाती है लम्हों को किनारों कि सुबह एहसास सुनाती है आवाजों कि धून मुस्कान दिलाती है।


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