Friday, 18 March 2022

कविता. ४३८५. हर सुबह एक सपने संग।

                                                      हर सुबह एक सपने संग।

हर सुबह एक सपने संग एहसासों कि उमंग देती है राहों को अरमानों कि पहचान इशारा देती है तरानों को लम्हों कि सौगात सहारा देती है।

हर सुबह एक सपने संग अरमानों कि धाराएं देती है दास्तानों को बदलावों कि उमंग अल्फाज देती है नजारों को आवाजों कि धून सहारा देती है।

हर सुबह एक सपने संग अफसानों कि सौगात देती है कदमों को लम्हों कि रोशनी खयाल देती है किनारों को आशाओं कि मुस्कान सहारा देती है।

हर सुबह एक सपने संग अल्फाजों कि सोच देती है किनारों को लहरों कि पुकार अफसाना देती है जज्बातों को अंदाजों कि उम्मीद सहारा देती है।

हर सुबह एक सपने संग आशाओं कि कोशिश देती है खयालों को नजारों कि तलाश अरमान देती है इशारों को तरानों कि राह सहारा देती है।

हर सुबह एक सपने संग अंदाजों कि उम्मीद देती है लहरों को अफसानों कि सौगात तलाश देती है अदाओं को लम्हों कि सोच सहारा देती है।

हर सुबह एक सपने संग नजारों कि आस देती है दिशाओं को उजालों कि परख अहमियत देती है कदमों को दास्तानों कि कोशिश सहारा देती है।

हर सुबह एक सपने संग दास्तानों कि मुस्कान देती है तरानों को अंदाजों कि उम्मीद आवाज देती है दिशाओं को उजालों कि परख सहारा देती है।

हर सुबह एक सपने संग राहों कि तलाश देती है कदमों को आशाओं कि परख पुकार देती है नजारों को एहसासों कि सोच सहारा देती है।

हर सुबह एक सपने संग जज्बातों कि सोच देती है जज्बातों को अदाओं कि समझ सौगात देती है लहरों को अफसानों कि मुस्कान सहारा देती है।


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