Friday 25 March 2022

कविता. ४३९२ एक जज्बात जब किसी परिंदेसा।

                                एक जज्बात जब किसी परिंदेसा।

एक जज्बात जब किसी परिंदेसा तराने संग उडने लगता है लहरों कि आहट संग इशारों का तराना एहसासों को छू कर चलता है।

एक जज्बात जब किसी परिंदेसा एहसास संग जुडने लगता है आशाओं कि मुस्कान संग दिशाओं का अफसाना नजारों को छू कर चलता है।

एक जज्बात जब किसी परिंदेसा आस संग निकलने लगता है राहों कि तलाश संग अरमानों का सपना इशारों को छू कर चलता है।

एक जज्बात जब किसी परिंदेसा आवाज संग मिलने लगता है कदमों कि आवाज संग नजारों का बदलाव किनारों को छू कर चलता है।

एक जज्बात जब किसी परिंदेसा नजारे संग समझने लगता है लम्हों कि पहचान संग आशाओं का इरादा खयालों को छू कर चलता है।

एक जज्बात जब किसी परिंदेसा अरमान संग उडने लगता है अंदाजों कि कोशिश संग एहसासों का अल्फाज अदाओं को छू कर चलता है।

एक जज्बात जब किसी परिंदेसा रोशनी संग मिलने लगता है आवाजों कि राह संग दास्तानों का किनारा एहसासों को छू कर चलता है।

एक जज्बात जब किसी परिंदेसा आवाज संग जुडने लगता है लम्हों कि पुकार संग अदाओं का तराना बदलावों को छू कर चलता है।

एक जज्बात जब किसी परिंदेसा आस संग समझने लगता है तरानों कि आवाज संग नजारों का उजाला लम्हों को छू कर चलता है।

एक जज्बात जब किसी परिंदेसा राह संग समझने लगता है लम्हों कि सौगात संग अंदाजों का सपना इशारों को छू कर चलता है।

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