Thursday, 3 March 2022

कविता. ४३७०. हवाओं से चुपचाप कोई।

                                                      हवाओं से चुपचाप कोई।

हवाओं से चुपचाप कोई पुकार सुनाई पडती है अक्सर अरमानों कि सुबह एहसास दिलाकर चलती है जज्बातों से सपनों कि आहट मिलती है।

हवाओं से चुपचाप कोई सरगम सुनाई पडती है अक्सर आशाओं कि मुस्कान रोशनी दिलाकर चलती है अल्फाजों से दिशाओं कि आहट मिलती है।

हवाओं से चुपचाप कोई पहचान सुनाई पडती है अक्सर अंदाजों कि उम्मीद आवाज दिलाकर चलती है दास्तानों से खयालों कि आहट मिलती है।

हवाओं से चुपचाप कोई सोच सुनाई पडती है अक्सर दास्तानों कि सौगात आस दिलाकर चलती है तरानों से नजारों कि आहट मिलती है।

हवाओं से चुपचाप कोई सौगात सुनाई पडती है अक्सर तरानों कि कोशिश अंदाज दिलाकर चलती है राहों से जज्बातों कि आहट मिलती है।

हवाओं से चुपचाप कोई दास्तान सुनाई पडती है अक्सर उजालों कि परख पहचान दिलाकर चलती है आवाजों से इशारों कि आहट मिलती है।

हवाओं से चुपचाप कोई परख सुनाई पडती है अक्सर उम्मीदों कि रोशनी खयाल दिलाकर चलती है इरादों से अफसानों कि आहट मिलती है।

हवाओं से चुपचाप कोई आस सुनाई पडती है अक्सर नजारों कि आस अफसाना दिलाकर चलती है लम्हों से बदलावों कि आहट मिलती है।

हवाओं से चुपचाप कोई सुबह सुनाई पडती है अक्सर आवाजों कि धून मुस्कान दिलाकर चलती है दिशाओं से कदमों कि आहट मिलती है।

हवाओं से चुपचाप कोई कोशिश सुनाई पडती है अक्सर दिशाओं कि राह अल्फाज दिलाकर चलती है किनारों से जज्बातों कि आहट मिलती है।

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