Thursday, 24 November 2022

कविता. ४६३५. उजालों कि सुबह अक्सर।

                                 उजालों कि सुबह अक्सर। 

उजालों कि सुबह अक्सर आशाओं कि तलाश देती है नजारों को दिशाओं संग अरमान सुनाती है लम्हों को खयालों कि समझ आस दिलाती है।

उजालों कि सुबह अक्सर आशाओं कि सरगम देती है कदमों को राहों संग आवाज सुनाती है एहसासों को अदाओं कि परख आस दिलाती है।

उजालों कि सुबह अक्सर आशाओं कि सोच देती है तरानों को अरमानों संग सोच सुनाती है अंदाजों को बदलावों कि सौगात आस दिलाती है।

उजालों कि सुबह अक्सर आशाओं कि परख देती है उम्मीदों को कदमों संग तलाश सुनाती है अल्फाजों को राहों कि रोशनी आस दिलाती है।

उजालों कि सुबह अक्सर आशाओं कि पहचान देती है लहरों को इशारों संग जज्बात सुनाती है इशारों को आवाजों कि धून आस दिलाती है।

उजालों कि सुबह अक्सर आशाओं कि दास्तान देती है सपनों को एहसासों संग मुस्कान सुनाती है उम्मीदों को कदमों कि आहट आस दिलाती है।

उजालों कि सुबह अक्सर आशाओं कि पुकार देती है इशारों को दास्तानों संग खयाल सुनाती है लहरों को अफसानों कि समझ आस दिलाती है।

उजालों कि सुबह अक्सर आशाओं कि आहट देती है खयालों को अंदाजों संग एहसास सुनाती है इरादों को किनारों कि मुस्कान आस दिलाती है।

उजालों कि सुबह अक्सर आशाओं कि सरगम देती है अदाओं को नजारों संग आवाज सुनाती है इशारों को अल्फाजों कि राह आस दिलाती है।

उजालों कि सुबह अक्सर आशाओं कि कोशिश देती है तरानों को अफसानों संग बदलाव सुनाती है अंदाजों को खयालों कि समझ आस दिलाती है।

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