Tuesday 29 November 2022

कविता. ४६४०. दास्तान से राहों कि।

                                  दास्तान से राहों कि।

दास्तान से राहों कि पहचान इशारा सुनाती है जज्बातों को कदमों कि आहट अफसाना दिलाती है लम्हों कि सरगम संग इशारों कि रोशनी लाती है।

दास्तान से राहों कि पुकार आवाज सुनाती है लहरों को नजारों कि सौगात मुस्कान दिलाती है अरमानों कि सुबह संग आशाओं कि रोशनी लाती है।

दास्तान से राहों कि मुस्कान तलाश सुनाती है इरादों को अदाओं कि परख बदलाव दिलाती है अल्फाजों कि सोच संग तरानों कि रोशनी लाती है।

दास्तान से राहों कि सरगम कोशिश सुनाती है आशाओं को किनारों कि उमंग अहमियत दिलाती है लहरों कि सरगम संग दिशाओं कि रोशनी लाती है।

दास्तान से राहों कि समझ सपना सुनाती है अंदाजों को बदलावों कि सोच आवाज दिलाती है इशारों कि सुबह संग कदमों कि रोशनी लाती है।

दास्तान से राहों कि सोच खयाल सुनाती है अदाओं को उजालों कि सुबह अफसाना दिलाती है अरमानों कि राह संग आशाओं कि रोशनी लाती है।

दास्तान से राहों कि कोशिश तराना सुनाती है खयालों को इशारों कि समझ नजारा दिलाती है आवाजों कि धून संग बदलावों कि रोशनी लाती है।

दास्तान से राहों कि सौगात तलाश सुनाती है एहसासों को अदाओं कि सोच आस दिलाती है जज्बातों कि मुस्कान संग जज्बातों कि रोशनी लाती है।

दास्तान से राहों कि पहचान इशारा सुनाती है खयालों को नजारों कि तलाश किनारा दिलाती है अदाओं कि परख संग किनारों कि रोशनी लाती है।

दास्तान से राहों कि लहर पहचान सुनाती है लम्हों को उम्मीदों कि आस सरगम दिलाती है इरादों कि कोशिश संग अफसानों कि रोशनी लाती है।

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