Saturday 5 November 2022

कविता. ४६१६. लम्हों को खयालों कि।

                                            लम्हों को खयालों कि।

लम्हों को खयालों कि तलाश सहारा देती है कदमों को नजारों कि समझ सपना सुनाती है तरानों संग आशाओं कि पहचान इशारे दिलाती है।

लम्हों को खयालों कि सौगात कोशिश देती है आवाजों को अदाओं कि परख अरमान सुनाती है अंदाजों संग कदमों कि आहट इशारे दिलाती है।

लम्हों को खयालों कि सरगम किनारा देती है दास्तानों को एहसासों कि सोच मुस्कान सुनाती है अदाओं संग अरमानों कि पुकार इशारे दिलाती है।

लम्हों को खयालों कि कोशिश सरगम देती है जज्बातों को किनारों कि समझ एहसास सुनाती है बदलावों संग उम्मीदों कि लहर इशारे दिलाती है।

लम्हों को खयालों कि समझ सोच देती है तरानों को उजालों कि पहचान अफसाना सुनाती है अल्फाजों संग कदमों कि आहट इशारे दिलाती है।

लम्हों को खयालों कि राह बदलाव देती है नजारों को दिशाओं कि सुबह आवाज सुनाती है आशाओं संग लहरों कि कोशिश इशारे दिलाती है।

लम्हों को खयालों कि तलाश रोशनी देती है किनारों को सपनों कि समझ अल्फाज सुनाती है तरानों संग आशाओं कि अहमियत इशारे दिलाती है।

लम्हों को खयालों कि सुबह दास्तान देती है कदमों को अदाओं कि परख मुस्कान सुनाती है लहरों संग एहसासों कि सौगात इशारे दिलाती है।

लम्हों को खयालों कि आस पुकार देती है अंदाजों को राहों कि पहचान कोशिश सुनाती है नजारों संग अरमानों कि पुकार इशारे दिलाती है।

लम्हों को खयालों कि उमंग पहचान देती है लहरों को दिशाओं कि सोच अफसाना सुनाती है जज्बातों संग अंदाजों कि सरगम इशारे दिलाती है।


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