Friday 4 November 2022

कविता. ४६१५. किनारों को अंदाजों कि।

                                     किनारों को अंदाजों कि।

किनारों को अंदाजों कि पुकार सहारा देती है दिशाओं को आशाओं कि सरगम इरादा दिलाती है लहरों को नजारों कि सोच सुबह देती है।

किनारों को अंदाजों कि सौगात कोशिश देती है तरानों को अरमानों कि पुकार आस दिलाती है दिशाओं को बदलावों कि राह सुबह देती है।

किनारों को अंदाजों कि परख दास्तान देती है जज्बातों को कदमों कि आहट खयाल दिलाती है उम्मीदों को अदाओं कि सौगात सुबह देती है।

किनारों को अंदाजों कि सोच पहचान देती है लम्हों को अदाओं कि सौगात अरमान दिलाती है जज्बातों को कदमों कि आवाज सुबह देती है।

किनारों को अंदाजों कि लहर सरगम देती है उम्मीदों को कदमों कि सोच अफसाना दिलाती है दास्तानों को एहसासों कि रोशनी सुबह देती है।

किनारों को अंदाजों कि रोशनी बदलाव देती है अंदाजों को राहों कि मुस्कान दास्तान दिलाती है आवाजों को आशाओं कि सरगम सुबह देती है।

किनारों को अंदाजों कि समझ मुस्कान देती है दिशाओं को लहरों कि आस खयाल दिलाती है कदमों को उजालों कि पहचान सुबह देती है।

किनारों को अंदाजों कि सौगात तराना देती है खयालों को जज्बातों कि आस एहसास दिलाती है सपनों को आशाओं कि सौगात सुबह देती है।

किनारों को अंदाजों कि पहचान सोच देती है कदमों को अरमानों कि पुकार रोशनी दिलाती है नजारों को राहों कि आस सुबह देती है।

किनारों को अंदाजों कि तलाश अफसाना देती है जज्बातों को आशाओं कि सोच एहसास दिलाती है लम्हों को दास्तानों कि परख सुबह देती है।

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