Monday 22 May 2017

कविता. १४२६. कुछ कहना तो चाहते है पर।

                                                    कुछ कहना तो चाहते है पर।
कुछ कहना तो चाहते है पर लब्ज कभी रुक जाते है पर आजकल उनसे कहते है वह रुककर ही तो फासले बनाते है जिन्हे हर मौके पर हम हर पल समझकर आगे बढते जाते है जिन्हे हर लम्हे के संग हम परखकर हम कहने से अक्सर कतराते है अनजाने मे जीवन के फासले बढाते है बिना कही बातों से ही तराने बिगड जाते है।
कुछ कहना तो चाहते है पर राहों मे कभी रुक जाते है पर आजकल उसे डर कहते है आपकी बजह से बनते रिश्ते बिगड जाते है लब्ज तो कई तूफान बनाते है पर उनसे लढने कि उम्मीद भी लब्ज ही दिलाते है हर लब्ज के कई फसाने बनते जाते है पर हम चाहे तो हर फसाने के आखिर मे मुस्कान के तराने बन जाते है।
कुछ कहना तो चाहते है पर पल कभी रुक जाते है पर आजकल उस पल से कहते है बडे कमजोर है आप क्योंकि आपकी बजह से लोग बातों को गलत समझ जाते है जो हमने न कही हो वही बात हमारी तरफ से कह जाते है हमारे सामने कहते तो रोक भी लेते हम पर ऐसे फसाने अक्सर पिठ पिछे बन जाते है।
कुछ कहना तो चाहते है पर किनारे कभी रुक जाते है पर आजकल उनसे कहते है वह बडे आसानी से रुक गये थे क्योंकि लहरों से कई किनारे टकराते है और अक्सर जीत जाते है जो हमे बताते है कोशिश तो कर लेते हम अक्सर दुनिया मे जो किनारे कमजोर नजर आते है बिना किसी मजबूत  लहर के ही डूब जाते है।
कुछ कहना तो चाहते है पर इरादे कभी रुक जाते है पर आजकल उनसे कहते है वह तो बस खयाल था इरादा नही क्योंकि इरादे तो मजबूत हुआ करते है जो अक्सर चट्टान से टकराकर उन्हे पार करने कि राह बताते है जिन्हे हम अब महसूस किया करते है जो खयालों से उपर उठते है वह इरादे ही मजबूत बन जाते है।
कुछ कहना तो चाहते है पर माहौल कि बजह से कभी रुक जाते है पर आजकल उनसे कहते है हालात तो बदलते है जो उसे ना लढ पाये वह क्या खाक जीवन को जीते है बंसी के सातों सूर मेहनत से ही बजते है जो एक लब्ज ना कह पाये वह जीवन कि बंसी को क्या खाक बजा सकते है वह पहले कोशिश मे हार मान जाते है।
कुछ कहना तो चाहते है पर लोगों को देखकर कभी रुक जाते है पर आजकल उनसे कहते है लोग तो कुछ ना कुछ समझते है हर बार उनके कहने से अगर हम कतराये तो क्या खाक जिया करते है हालातों से उलझकर भी जो लब्ज सच कह जाते है वह लब्ज ही तो जीवन मे कई रंगों को समझ सकते है वह जीवन को बनाकर जाते है।
कुछ कहना तो चाहते है पर इशारों को समझकर कभी रुक जाते है पर आजकल उनसे कहते है इशारे अगर सही हो तो हम उनसे रुक जाते पर गलत इरादे जाने क्यूँ हमे रोक लिया करते थे अब उनसे उलझकर हम अपने दम पर जिया करते है वह धारा जिसमे रोशनी हो उसके लिये लढते है वह जंग ही है जिसमे हम जीते जाते है।
कुछ कहना तो चाहते है पर उम्मीद के खातिर कभी रुक जाते है पर आजकल उनसे कहते है जो उम्मीद सच कहने से रोके उसके किनारे अक्सर गलत रहते है जो सच कि उम्मीदे दे उन किनारों के लिए अब भटक लिया करते है क्योंकि झूठ कि उम्मीद से जो महल बनते है वह रेत के हुआ करते है वह हवाओं के आहट से खत्म हो जाते है।
कुछ कहना तो चाहते है पर तलाश कि डर से कभी रुक जाते है पर आजकल उनसे कहते है वह मंजिल मिले ना मिले पर बिना तलाश कि मंजिल मे अक्सर काटे मिलते रहते है जो उन्हे अपनाते है वह मंजिल पर भी आँसू बहा लिया करते है क्योंकि मंजिल गलत हो तो मुस्कान दूर होती है और हम तलाश मे भी अक्सर मुस्कुराते हुए जाते है। 

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