Saturday 24 October 2015

कविता २७४. ख्वाब के बुलबुले

                                        ख्वाब के बुलबुले
कभी फुरसत मे एक ख्वाब भी देखा था जिसे समज लेने कि चाहत मे दुनिया को अलग अंदाज़ मे देखा था पर पानी के बुलबुले संग उसे भी तो टूट ही जाना था
कैसे समजे उन ख्वाबों को जिन्हें जीवन को परख कर आगे ले जाना था एक बुलबुले सा ख्वाब भी सच बन जाता था उसे एक सोच के बाद जीवन का हिस्सा बन जाना था
जिसे समज लेने कि कोशिश मे दुनिया को भी समज लेना था पर बुलबुले से अलग ना कर सके हम उस ख्वाब को जिसका आना फूलों कि मेहक का आना था
सभी ख्वाब एक से लगे क्योंकि हमे कहा ख्वाबों को परख लेना आता था हम तो बस ख्वाब देख लिया करते थे क्योंकि उनमें किस्मत कि ख़ुशियों का आना जाना था
जब बुलबुले से ख्वाब को अलग ना कर पाए तो उन ख्वाब को कैसे आगे बढ़ाना था जिन्हें हम समज लेते है उन ख्वाबों को अलग से ढूँढ़ लेना जीवन मे ज़रूरी था
ख्वाब का एक अलग ही मतलब है जिसे फुरसत मे समज लेना था क्यूँ समजे उन ख्वाबों को जिनका जीवन मे होना हर पल एक ज़रूरत था जिसे परखे तो ख्वाबों को मतलब देना ज़रूरी था
पर हर ख्वाब को जीवन मे सही से समज लेना ज़रूरी होता है ख्वाब के अंदर का मतलब जीवन पर अक्सर असर करता है इसीलिए तो ख्वाब के बुलबुले से मन अक्सर डरता है
जो ख्वाब झूठे है उनके डर से सच्चे ख्वाबों को भी खो देता है जीवन का अलग मक़सद जीवन को रोशनी दे जाता है जीवन को समज लेना कई बार काम आता है
जीवन को जो समजे उस ख्वाब को समज लेना काम बड़ा आता है पर कभी कभी ख्वाब के बुलबुले कि बजह से जीवन रोशनी नई लाता है ख्वाबों को समज लेना ज़रूरी नज़र आता है
बुलबुले के अंदर ख्वाब अलग नज़र आता है पर कभी कभी जिसे बुलबुला समज लेते है उसके अंदर जीवन का सच्चा और अच्छा मतलब नज़र आता है जिसे बुलबुला समजा उसमें छुपी ख़ुशियाँ नज़र आती है

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