Saturday, 24 October 2015

कविता २७५. धरती के अंदर एक जान

                                        धरती के अंदर एक जान
धरती के अंदर एक जान बसती है उसके हर कोने मे एक आस छुपी होती है धरती के अंदर एक शुरुआत छुपी होती है जिसे परख लेने कि प्यास मन मे हर बार रहती है
धरती जीवन को अलग एहसास देतीं है जिसे समज लेने का नया एहसास छुपा होता है धरती के अंदर जान हमेशा जिन्दा रहती है जान के अंदर जीवन कि तलाश रहती है
धरती के अंदर अलग तरह के जीवन पर हर बार असर करते है धरती के बीच जीवन तो हमेशा जिन्दा रहता है धरती के अंदर छुपी जान जीवन पर असर करती है
धरती के अंदर अक्सर जान छुपी होती है जिसकी जीवन को आस भी नहीं होती है वह शुरुआत जीवन को रोशनी देती है जीवन के अंदर अलग एहसास होता है
धरती के साथ कोई तो सोच छुपी होती है हर कोने मे अलग तरह की सोच जो मन को ख़ुशियाँ देतीं है धरती पर कुछ तो छुपा मतलब होता है जो जीवन को रोशनी देता है
धरती के हर मोड़ पर उम्मीद छुपी होती है पर हम कभी नहीं पाते वह कहा छुपी होती है क्योंकि हर उम्मीद कि जगह हर बार अनजानी होती है जो जीवन को रोशनी देती है
धरती को हर ओर से चाहो तो ही वह उम्मीद उभर आती है उस उम्मीद मे जीवन कि तलाश छुपी होती है पर हम उसे नहीं ढूँढ़ पाते है तो फिर हम क्यूँ नहीं समज पाते है
जीवन मे वह तलाश ज़रूरी नहीं होती हर मोड़ से धरती को चाहो तो आस कम नहीं होती उम्मीदें हर पल जीवन मे हर बार बढ़ती है रहती और उनकी चाहत नहीं रुकती है
अगर हम चाहे हर आस को तो जीवन कि प्यास नहीं रुकती तो हर बार चाहो धरती के हर हिस्से को तो ही जीवन कि आस है बढ़ती और हर कदम पर दुनिया आगे बढ़ती है
धरती कोने के अंदर चुपके से उम्मीद है बसती जो हर पल जीवन को समज लेने कि कोशिश बार बार है करती उसी कोशिश से ही उम्मीदों कि जीवन मे शुरुआत होती है

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