Thursday 29 October 2015

कविता २८४. खुली आवाज़

                                            खुली आवाज़
चुपकेसे जो कहना था वही कभी खुली आवाज़ मे भी अपनी माँगे रखने के लिए दुनिया कि नज़र मे ख़ास होना ज़रूरी नहीं कभी कभी अपने आप को अपनी दोस्तों कि नज़र से भी देखा करो
दुश्मन तो हर बार अलग सोच से चोट देंगे उन्हें अपनी नज़र से कभी दूर भी रखा करो क्योंकि उनकी सोच काटा है हम यह समज कर जिन्दगी जिया करो
उसे कुछ ऐसे जियो कि उसका मतलब भी बदल जाए उसे हर बारी हम जीत लेंगे उस उम्मीद से जिया करो उसे अपने साथियों के संग हर बार जीवन मे आराम से जिया करो
जब जब हम जीवन मे अपना हक़ माँग लेंगे तो अपने विश्वास के संग जिया करो मत परखने दो लोगों को जीवन मे इतनी जगह न दिया करो कि तोड़ सके वह उम्मीदों को
बल्कि जीवन कि हर बाज़ी को नये सीरे से समज लिया करो जीवन के अंदर अलग सोच रखा करो जीवन को नई साँसों मे चुपकेसे  समज लिया करो नई तरहसे जिया करो
जीवन कि हर सोच को हर बार समज लिया करो पर उस सोच को ऐसी अहमियत ना देना उस सोच मे धीरे धीरे से अपने जीवन को समज लेना उसमें उम्मीदें रखा करो
समजो उस सोच को जो आपको उम्मीदें दे जाए उस सोच मे जीवन गुज़ार लिया करो हर कदम हर मोड़ पर मन मे उम्मीदें रखकर हर बार जीवन को हर सही सोच के संग जिया करो
यह मत सोचो के लोग क्या कहते है पहले क्यूँ कहते है समज लिया करो कभी कभी जब बजह जीवन पर असर कर जाती है उस बजह को समज लिया करो
जब कोई ज़हर भरा मन काटे कि तरह चुभ जाए तो उसे अनदेखा कर देना हर बार जीवन पर असर कर जाए समजो वह तो ज़हर है जो हम क़ाबूमे चाहता है उसे जीवन से दूर किया करो
जिस जीवन को हर बार समज ले उस सोच पर जीवन के सही तरीक़े से समज लिया करो जीवन मे उम्मीदों पर विश्वास किया करो और उन उम्मीदों को देनेवाले दोस्तों पर विश्वास किया करो

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